Tuesday, December 30, 2014

{ ८४९ } {Dec 2014}





कोई नहीं कर सकता दूर किसी की तनहाई
हैं सूरज, चाँद, तारे मगर तनहा आसमान है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४८ } {Dec 2014}





दिल में कोई कमी महसूस होगी
हर तरफ़ खामोशी महसूस होगी
छूट जायेगा साथ जिस पल तेरा
ज़िन्दगी अजनबी महसूस होगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४७ } {Dec 2014}





उसका रूठना फ़िर हंसना-हंसाना अच्छा लगता है
आँखों-आँखों में उससे बतियाना अच्छा लगता है
शायद मेरी मोहब्बत आज-कल मुझसे रूठ गई है
इस लिये ख्वाबों में डूबना उतराना अच्छा लगता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, December 29, 2014

{ ८४६ } {Dec 2014}




मोहब्बत की रोशनाई और एहसासों की कलम
इन्ही से हम ज़िन्दगी भर अपने इम्तिहाँ देते रहे।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४५ } {Dec 2014}





मुझसे बेवजह पूछते हो तुम वफ़ा के मायने
मैं तो तुम्हे हाथों की लकीरों में बसा चुका हूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४४ } {Dec 2014}





वो बसी मेरे दिल में चाहे नजरों से दूर है
ऐसे हादसे भी मोहब्बत में होते जरूर हैं
उसके सिवा और कुछ दिखता नहीं मुझे
वो ही नाजनीन मेरी नजरों का नूर है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४३ } {Dec 2014}





वही नक्श फ़िर तसव्वुर में उतर आया है
हाल-ए-दिल जिससे कहने की आरजू है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४२ } {Dec 2014}





इस गुलजार गुलशन को ये कैसा चमन बना दिया है जमाने ने
जहाँ दिन के आगाज़ का पैगाम अब नहीं देते गुल और कलियाँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४१ } {Dec 2014}





चमन-ए-इश्क को कभी गुलजार न करना
कभी. किसी. नाजनीन. से प्यार न करना
धोखा. ही. मिलेगा. इश्क में हुस्न वालों से
इस लिये इन हसीनों पे एतबार न करना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४० {Nov 2014}





जुनूने-इश्क में मस्ताने कहाँ कहाँ पहुँचे
रफ़्ता - रफ़्ता अफ़साने कहाँ-कहाँ पहुँचे
ये. बात. शमा. में जलते. पतिंगे से पूछो
ज़ख्मे-ज़िगर ले दीवाने कहाँ-कहाँ पहुँचे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, December 18, 2014

{ ८३९ } {Nov 2014}




आदमी की आज यहाँ कोई कीमत नहीं
बुतों की इबादत को जमाना परेशान है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३८ } {Nov 2014}





रोम-रोम में सुलग रही चिंगारी
अब न दिखलायेंगे कोई लाचारी
बहुत पल चुके आस्तीनों में साँप
अब कुचल कर रख देंगें अत्याचारी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, December 17, 2014

{ ८३७ } {Nov 2014}





यादों में बसी उनकी याद कहीं नही जाती
कोई सदा कोई फ़रियाद लब पे नहीं आती
भटकता फ़िर रहा हूँ हर तरफ़ उदास-उदास
अपनों से अपनी बिछड़न सही नहीं जाती।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३६ } {Nov 2014}





अपनों ने किया जब भी किनारा है
अश्कों को पीकर ही वक्त गुजारा है
फ़ूलों के बदले राह में बिछे हैं काँटे
मिलता देखने को ये कैसा नजारा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३५ } {Nov 2014}





तुम उसकी नादानियों को बिसराना समझ बैठे
वो मिलने की आरजू लिये ही जिये जा रहा है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३४ } {Nov 2014}





जागते है हम रात को बस इसी वास्ते
वो ख्वाबों में आकर कहीं लौट न जाये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३३ } {Nov 2014}





मेरे प्यार को लोगों ने बदनाम कर दिया
ये व्यवहार है जमाने का अशिकी के साथ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३२ } {Nov 2014}





भीड़. में खडे हैं तनहा, किसे. आवाज दे
कौन है. यहाँ. अपना, किसे. आवाज दें
गूँज. कर लौट आयेगी. अपनी. ही सदा
पत्थरों की बस्तियाँ हैं किसे आवाज दें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३१ } {Nov 2014}





मिल जाये अगर कहीं खुदा तो खुदा से पूछ लें हम
ऐ ज़िन्दगी के मालिक कभी हमें भी खुशी मिलेगी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, December 14, 2014

{ ८३० } {Nov 2014}





जाने क्या-क्या कह जाती है ज़िन्दगी
जाने क्या-क्या सह जाती है ज़िन्दगी
मशहूर हो या कि बदनाम ही हो जाये
दर्मियाँ फ़ासलों के रह जाती है ज़िन्दगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२९ } {Nov 2014}






कश्तियाँ टूट कर बिखर गईं हैं सारी
अब समन्दर का ही सहारा रह गया है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, November 1, 2014

{ ८२८ } {Oct 2014}





हुए कहाँ-कहाँ ज़ख्म दिखाने की जरूरत क्या
दिल में बसे हुए दर्द बतलाने की जरूरत क्या
मोहब्बत मोहताज नही है किसी बन्धन की
किसी को एहसास दिलाने की जरूरत क्या।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२७ } {Oct 2014}





न छुपाओ तुम हमसे अपनी राज की बातें
हम तुमसे किसी बात का पर्दा नहीं करते।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२६ } {Oct 2014}






जुदाई में मिलन की तिश्नगी महसूस होती है
हर पल हर क्षण तेरी ही कमी महसूस होती है
आज गर तूझे छूना भी चाहूँ तो छू नहीं सकता
पत्थर की दीवार बीच में खड़ी महसूस होती है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२५ } {Oct 2014}






किसी तरह की छाँव हमें मयस्सर नहीं
छतें टूटी पड़ी हैं, शज़र भी सूखे खड़ॆ हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२४ } {Oct 2014}





काट दी सुहानी ऋतुओं की गर्दनें भागते हुए लम्हों ने
रूमानी ज़िन्दगी की चौकड़ियाँ दहशत में डूबी रात हुईं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२३ } {Oct 2014}





उस संगदिल ने मेरे जज्बातों को कभी समझा ही नहीं
अपनी आदत है दिल की गहराइयों से इश्क का निभाना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२२ } {Oct 2014}






बीता वक्त, गुजरा जमाना अच्छा लगता है
यादों के संग दिल बहलाना अच्छा लगता है
बीती जाती घडियाँ दम तोड़ रही उम्मीदें भी
फ़िर लौटेगा वक्त कहलाना अच्छा लगता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


Sunday, October 26, 2014

{ ८२१ } {Oct 2014}





सबको सबके सामने करती बेनकाब
ज़िन्दगी पर मौत की ऐसी उधारी है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२० } {Oct 2014}





होठों पर चिपकी हुई है खोखली हँसी
पर दिल का हाल हुआ बहुत बेहाल है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१९ } {Oct 2014}





किस्म-किस्म के रंगों में देखा है तुमको
कभी शोला हो तुम तो कभी शबनम भी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, October 25, 2014

{ ८१८ } {Oct 2014}





ये. सफ़र. ही. सफ़र. की मँजिल. है
चंद कदमों का हिसाब क्या करना।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१७ } {Oct 2014}






मैं चाहूँगा तुझे सदा तू चाहे वफ़ा का सिला न दे
प्यार गुनाह नहीं, बे-गुनाही की मुझे सजा न दे
मेरे दिल के दर्द को सुन मेरे आँसुओं को तो देख
दिल कब का मर चुका अब रूह को कजा न दे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१६ } {Oct 2014}






जब पतवारें टूट गयी हों सारी
तब कश्ती दरिया कैसे पार करे।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१५ } {Oct 2014}





छलकने न दिया अपने सब्र का प्याला
ये सब्र ही तो मेरा असल इम्तिहान है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१४ } {Oct 2014}


दर-बदर ही रहे कोई अपना नहीं
वीरान आँखों मे कोई सपना नहीं
कुछ एहसास आँखों में जगा करते
पर दुनिया से कोई उरहना नहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१३ } {Oct 2014}






मेरी पीड़ा को किसने जाना-माना-पहचाना है
जमाने से हृदय में उद्वेग उठता थमता है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, October 24, 2014

{ ८१२ } {Oct 2014}





ये दिल, ये जान, ये जज़्बात और ये तनहाई
यही अपनी दौलत है बोलो किसके नाम करूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८११ } {Oct 2014}








आँखों आँखों में ही मैंने रात गुजारी है
किस कयामत की ज़ुल्मात गुजारी है
दिन का सूरज झुलसाये देता है बदन
लड़खड़ाती आस में हयात गुजारी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

ज़ुल्मात -घोर अँधकार

{ ८१० } {Oct 2014}






तमन्ना है कि कोई मिल जाये इस टूटे दिल को
जिसकी साँसों की खुश्बू से फ़िज़ा महक जाये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०९ } {Oct 2014}






न हो हासिल शराब जब तक तेरी आँखों की
तब तक मए-सागर में डूबना-उतराना क्या।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, October 10, 2014

{ ८०८ } {Oct 2014}





ना-मुनासिब था उनसे मिलना कल
आँख वीरान थी और दिल था बोझल
आज फ़िर से उसे ही ढ़ूँढ़ने निकला हूँ
भीड़ में खुद ही न खो जाऊँ मैं पागल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०७ } {Oct 2014}






ये पूनम की चाँदनी से नहाई रातें, ये टिमटिमाते हुए सितारे
उसपे नागिन सी लहराती तेरी ज़ुल्फ़े मेरा चैन लिये जाती है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०६ } {Oct 2014}






तूफ़ान से लड़ सकें, अब वो नर नहीं हैं
है परवाज़ की कसक लेकिन पर नहीं हैं
एक हैं राम, सैकड़ों रावण से कैसे लड़ें
अँधियारों को उजालों से जब डर नहीं है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०५ } {Sept 2014}





ज़िंदगी में गम मिले मुकद्दर से ज्यादा
फ़ूल चुभे हैं दिल में नश्तर से ज्यादा
ढ़ोते रहे बोझ खामोशी का जीस्त भर
घाव दे रहे हैं रिश्ते खंजर से ज्यादा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०४ } {Sept 2014}






वक्त ने ही गम दिया है और वक्त ही मरहम बनेगा
फ़िर गिले-शिकवों में क्यों वक्त जाया किया जाये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, October 8, 2014

{ ८०३ } {Sept 2014}





अब तो शाम घिर आई आँखें भी धुँधला गईं
सितमगर और कब तक मैं तेरा रास्ता देखूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०२ } {Sept 2014}





दिन बीता अभाव में रात बीती तनाव में
कट रहे दिन जैसे धूप जल रही छाँव में
रिसते ज़ख्म हम जा कर किसे दिखायें
जब जहर भरा हो इंसान के स्वभाव में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०१ } {Sept 2014}





वीरानियों के इश्क में दिल इतना रो चुका
कि शहनाइयों की गूँज अब भाती नहीं है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०० } {Sept 2014}





बिखरती शाम उलझे गेसुओं को सँवारा जाये
चिलमन से झाँकती हुई आँख को निहारा जाये
तनहाइयों के सिवा अपने पास कुछ और नहीं
बिछी है चौसर आखिरी बाजी को निखारा जाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल