Sunday, September 30, 2012

{ ३८२ } {Sept 2012}





राह जीवन की कठिन खारजारों से भरी है
दुख-दर्द की डालियाँ भी अभी तक हरी हैं
बन के लौ दिये की तमस से मैं लड रहा हूँ
अँधड-आँधियाँ-अँधेरों की लगी सरसरी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३८१ } {Sept 2012}





जब-जब अरमानों के सपने
आशाओं के लेकर मुस्काए
नींद चुरा ली तब उसने मेरी
जब-जब मुझसे मिलने आए।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३८० } {Sept 2012}






मेरे अधरों की पगडंडी, कभी चरण हँसी के चूम न पाई
मेरी मादकता मादक बनकर अपने मद में झूम न पाई
फ़ट जात उर मुखर वेदना से जब आँसू का उपहार मिले
श्वासों की उर्मि शैय्या पर जब न मुझको प्यार मिले।।


--- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७९ } {Sept 2012}






हाले-दिल हमसे कहो गम घट जायेगा
साथ ले लो हमे ये सफ़र कट जायेगा
गर जिद पर अपनी ही टिके रहोगे तुम
राहे-जीस्त खाराजारों से पट जायेगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७८ } {Sept 2012}






मेरे दिल को और किसी की दरकार नही
अब मुझको और किसी का इंतजार नही
मेरी साँसों में बस गया बस तेरा ही नाम
आखिर कैसे कह दूँ कि तुमसे प्यार नही।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७७ } {Sept 2012}






जवानी के सपने सुनहरे होते हैं
आँखों पे पलकों के पहरे होते है
दिल से दिल के रिश्ते टूटते नही
ये रिश्ते खून से भी गहरे होते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७६ ) {Sept 2012}






दरमियान अपने फ़ासलो को हम कम करेंगें
कुछ आगे तुम भी बढो कुछ आगे हम बढेंगें
जगह बनाओ रूठे हुए दिल में प्यार की, फ़िर
फ़ूल चाहतों के दो दिलों के दरमियान खिलेंगें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७५ } {Sept 2012}






वफ़ा के बदले में अक्सर ये सिले मिलते हैं
चोट लगती है और दिल टूट कर बिखरते है
हर नये घाव का मरहम तलाशने के खातिर
तमाम घावों को भुला के हम वफ़ा करते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७४ } {Sept 2012}






खोजोगे तो खुद खो जाओगे
पता नही कब मिल पाओगे
अब जागो भी तुम सोते से
परछाँईं से कब तक भागोगे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, September 28, 2012

{ ३७३ } {Sept 2012}






आँख के कोरों से जब भी तुमने मुझे निहारा
कर दिया मदमस्त मुझे, मदिरा ऐसी पिलाई
आज अपनी तीखी नजरों में भरो ऐसी मदिरा
हम पियें उसको और पडॊ तुम ही तुम दिखाई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७२ } {Sept 2012}





पलकों के आँसू सूख भी न पाये इस बार भी
पर लोग कह रहे थे क्यों आँखें नम नही तेरी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७१ } {Sept 2012}






दिल से की गई सच्ची पुकार काफ़ी है
घडी-घडी क्या ऐ खुदा-ऐ खुदा करना
जब भी चाहत जगे दिल में इश्क की
पहले अपने दिल का मुआइना करना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, September 27, 2012

{ ३७० } {Sept 2012}






अब न वह चाँदनी न वह खुशबू
अब न है वह रोशनी सितारों में
तुम जो बदले बदल गया मौसम
अब न है वह दिलकशी बहारों में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६९ } {Sept 2012}







तल्खियाँ नर्म दिलों को झिंझोडती हैं
दुश्मनी ज़िन्दगी का रुख मोडती है
भरोसा किस पर करें किस पर नही
वक्त पर परछाँईं भी साथ छोडती है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६८ } {Sept 2012}






सपनों में तुमसे ही बातें करते हैं
रौशन तेरी यादों से रातें करते हैं
है ये इंतहा हमारी दीवानगी की
ख्वाबों में तुमसे मुलाकातें करते है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६७ } {Sept 2012}





जिस्म की चोट का कोई डर नही
वक्त के साथ-साथ ये भर जायेंगे
लफ़्जों की चोट न देना किसी को
दिल तक को ये घायल कर जायेंगें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

( ३६६ ) {Sept 2012}





कब तक आखिर रात रहेगी
सूरज सुबह को निकलेगा ही
गम की रातें भी छट जायेंगी
कुछ तो आलम बदलेगा ही।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६५ } {Sept 2012}






उसकी मुस्कान आखिर क्या करूँ मैं
जिसका रूप नकली है, रँग खोटा है
महल तो उसका बहुत बडा लेकिन
दिल तो उस बेवफ़ा का बहुत छोटा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६४ } {Sept 2012}






ये वक्त भी क्या-क्या कमाल करता है
हर शख्स से वो जवाब-सवाल करता है
वक्त कभी किसी का एक सा होता नही
क्यों कल के अँधेरे का खयाल करता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६३ } {Sept 2012}






खारों के बीच ही फ़ूल भी खिला करता है
ज़िन्दगी दर्द का सिलसिला हुआ करता है
तमन्नायें पिघल-पिघल जाती हैं बर्फ़ सी
आँखों को हक अश्कों का मिला करता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६२ } {Sept 2012}






देख कर जाम जी मचलता है
एक पर एक का दौर चलता है
लडखडाते हैं रिन्द जितना ही
मयखाना उतना ही सँभलता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६१ } {Sept 2012}





अभिनय का दौर है रँग-मँच हुए घर
उतर गया रिश्तों का रगमयी स्वर
सोंधी माटी खो गई कहीं बीच शहर
खारजारों में उलझ के रह गई डगर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६० } {Sept 2012}






तम की बढ रही हैं गहराइयाँ
लम्बी होने लगी हैं परछाइयाँ
प्रीत को मिल रहे नहीं मीत हैं
इस तरह बढ रही हैं तनहाइयाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५९ } {Sept 2012}





आज मित्रता बैर करे है खोले अपने बाल
प्रेम कहाँ से पायें जब इंसानों का है काल
घोर अन्धेरा, जर्द सबेरा दोनो उसके रूप
किसको छोडूँ या रखूँ, आ पडा जँजाल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५८ } {Sept 2012}






थे कभी तुम राह के साथी, एक थी मँजिल हमारी
दिल की धडकनें एक थी, एक थी महफ़िल हमारी
आसमाँ के चाँद-तारे, धरती की नदियाँ और सागर
दे रहे हैं देखो वो गवाही कि एक है सहिल हमारी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, September 26, 2012

{ ३५७ } {Sept 2012}






आँख हमारी हर पल नम है
तुमको न पाने का गम है
इतना हमने तुम बिन जाना
दर्द बहुत है मरहम कम है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५६ } {Sept 2012}






मैं कब कहता दूर हूँ मैं और तेरी मुझे खबर नहीं
यादों की ज्वाला का मुझ पर तनिक असर नहीं
याद हमें अपने वादे, मन से दूरी नहीं ज्यादा है
कैसे तोडूँ सारे बँधन, आडे आती जग-मर्यादा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५५ } {Sept 2012}






हम अक्सर लाचार हुए वहाँ बरस जाने को
कोई भी नही मिला जहाँ पर तरस खाने को
गली-गली घूमे हम नयनों में आँसू लिये हुए
अधरों की सीपी का मधुर स्पर्श पाने को।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५४ } {Sept 2012}






आज तेरी यादें उमडती जा रही हैं
मन के आँगन में मची छमछम है
कर रहा हूँ मैं शिकायतें क्या-क्या
ये तुम्हारा चेहरा है या मेरा भ्रम है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५३ } {Sept 2012}






अब आ चुका वक्त सर पर तूफ़ान उठाना है
स्वेद-बिन्दु का सूरज भू-तल पर चमकाना है
टकराओ काल से, टूटे अहं निरंकुश बादल का
उठो जवानों तुम्हे भारत का इतिहास बनाना है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५२ } {Sept 2012}






शान्ति रहती थी जहाँ कभी, अब
सिलसिला बस गया सवालों का
देश की धरती बारूद उगलती है
अब यहाँ दम घुटता उजालों का।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५१ } {Sept 2012}






अपनी यादों के रँग उडा कर तनहा हूँ
बस्ती से अपनी दूए आ कर तनहा हूँ
हर तरफ़ देखा कोई नहीं है मेरे जैसा
हर ओर अपने भीड सजा कर तनहा हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, September 24, 2012

{ ३५० } {Sept 2012}






कितनी लम्बी दूरी है इस मानुष जीवन की
है कौन यहाँ जो इसको तनिक जान सका
वर्षों-वर्षों का साथ सहेज रहे यहाँ पर सब
पल भर का परिचय कोई न पहचान सका।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४९ } {Sept 2012}






खो गयी सब धारणायें
छल रही सब कामनायें
पा सके शान्ति के पल
भटक रही हैं भावनायें।।


--- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४८ } {Sept 2012}






चैन कहाँ फ़िर दुनिया में
गर तू रहेगी दूर मुझसे
हैं अभी कुछ साँसें बाकी
मत हो दूर हुजूर मुझसे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४७ } {Sept 2012}





भावनायें, खूबसूरत फ़ूल भी हो सकती हैं
भावनायें, बदसूरत खार भी हो सकती हैं
चाहे खुश्बू की मानिन्द जियें मुस्कुरायें
चाहे खार की मानिन्द चुभे औ’ मुरझायें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, September 9, 2012

{ ३४६ } {Sept 2012}





प्यार के कातिलों की बस्ती में
नाहक मुझे जनम दिया तुमने
तनहा है दीप, हवा निरंकुश है
मेरे ईश्वर ये क्या किया तुमने।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४५ } {Sept 2012}






आदमी अब साँप हो रहा है
वरदान अभिशाप हो रहा है
सच्चाई ख्वाब मे बदल रही
कहते हैं इन्कलाब हो रहा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४४ } {Sept 2012}





फ़ले-फ़ूले एक चमन की तरह
सितारों से भरे गगन की तरह
उनकी तनहाइयाँ लगती मुझे
किसी रंगीन अंजुमन की तरह।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४३ } {Sept 2012}






वेदना जमी जन्म कुन्डली में तो
बेबसी बसी है हाथ की लकीरों में
जिनका कुछ भी नहीं यहाँ अपना
गिनती होती है उनकी फ़कीरों में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४२ } {Sept 2012}






यह केवल मेरी व्यथा नही जो मैं गाता हूँ
जग का रुदन छुपा है मुझमे वो दिखलाता हूँ
वन-गिरि-पर्वत का नहीं, मैं धरती का हूँ वासी
मानुष जीवन की परतों में उलझा जाता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४१ } {Sept 2012}





कुछ तो हो अब ऐसा कि जीने की चाह निकले
कहीं से तो बे-पनाह मोहब्बत की राह निकले
आते जो करीब फ़िर बदल जाती निगाह उनकी
अब कोई तो हो ऐसा जो मोहब्बत ख्वाह निकले।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३४० } {Sept 2012}






घरौंन्दो में घिरा हुआ मानव शहादत कर नही सकता
जो है सच्चा शहीदे-आजम वो कभी मर नही सकता।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३९ } {Sept 2012}





अपनी कविताओं में सँजोकर
मैं बेबसी का पयाम लाया हूँ
सत्ताधीशों के नाम मैं अपने
आँसुओं का सलाम लाया हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल