Friday, February 28, 2014

{ ७४२ } {Feb 2014}





मोहक छवि-तरँग से विधि ने
तेरे रूप लावण्य को बनाया है
फ़िर सोमरस की मादकता को
तेरी मस्त अदाओं में बसाया है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७४१ } {Feb 2014}





क्या-क्या न गुजरा इश्क में बताना चाहता हूँ
कोई साज छेड़ो अपने दर्द गुनगुनाना चाहता हूँ
कुछ ख्वाबों की तस्वीर सजाई थी दिल में मैंनें
फ़िर उन ख्वाबों को तसव्वुर में लाना चाहता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७४० } {Feb 2014}





जमाने को बाँटे है हमने खूब कहकहे
मेरे हिस्से सिसकते ख्वाब ही आये
खूब लुटाई है हमने प्यार की दौलत
मेरे हिस्से रुसवाई के खिताब ही आये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७३९ } {Feb 2014}





एकाकी है मृत्यु, यदि जीवन हो एकाकी तो घबड़ाना कैसा
मार्ग एकाकी, लक्ष्य भी एकाकी, एकाकी से डर जाना कैसा।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७३८ } {Feb 2014}





निशदिन हारा हूँ जीवन के पथ पर
कैसे कह दूँ मैंनें सारा जग जीता है
छोर समय का मैं पकड़ नहीं पाया
कैसे कह दूँ सुन्दर अतीत बीता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७३७ } {Feb 2014}





अब डर लगता नहीं खंजर के जहरीले गहरे आघातों से
चुभन के एहसासों वाले दिन जब जीवन में जोड़ चुका।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७३६ } {Feb 2014}





काँटों से दिल को कोई गिला अब इसलिये नहीं
कि यह ज़िन्दगी हमारे लिये दिल्लगी हो गई है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७३५ } {Feb 2014}





अरमानों के शीशमहल में अब खामोशी है रुसवाई है
जाने कहाँ गया वो जालिम तनहाई का जहर पिला।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, February 27, 2014

{ ७३४ } {Feb 2014}





ज़ीस्त से बहुत कुछ चाहा था पर मिल न सका
इसलिये ज़िन्दगी को रोज मारता-जिलाता हूँ
अपनों की नजर में इसलिये बहुत बुरा भी हूँ
क्यों कि अपने ऐब मैं किसी से नहीं छुपाता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, February 26, 2014

{ ७३३ } {Feb 2014}





हर कदम पर तपन मिली मुझको
दर्दो-गम की अंजुमन मिली मुझको
वक्त की तल्खियों ने जब-जब घेरा
मयकदे में ही शरण मिली मुझको।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल