पल्लव
Friday, July 3, 2015
{ ९२० } {April 2015}
अब कहीं और कोई शरारत हो न जाये
मौला को इसाँ से शिकायत हो न जाये
छोड़ दे अपनी जालिमाना हरकतें अब
कहीं ये धरती ही नदारत हो न जाये।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ९१९ } {April 2015}
सूनसान हैं फ़िज़ायें मौसम उदास है
दूर है मेरी गज़ल इन्तज़ार पास है
कोई जा कर कह दे मेरी नाजनीं को
टूटी नहीं अभी मिलन की आस है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ९१८ } {April 2015}
हम जहाँ सर झुका कर बैठ गये
आप वहीं पास आकर बैठ गये
राहे - मोहब्बत में क्या बतायें
आप से दिल लगाकर बैठ गये।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ९१७ } {April 2015}
बाट जोह रही पिया की, मैं तड़पूँगी वो तड़पायेगा
चाँद आसमाँ से आकर जब दरीचे में रुक जायेगा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
Wednesday, July 1, 2015
{ ९१६ } {April 2015}
खुदा की रहमत है ये ज़िन्दगी यूँ ही जिये जा
अच्छे-बुरे की पहचान तो जमाना कराता है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ९१५ } {April 2015}
राह मुश्किल थी मगर अब आसान हो गई
अजनबियों के शहर से अब पहचान हो गई।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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