Sunday, June 30, 2013

{ ६२२ } {June 2013}




इन हँसती आँखों में अश्कों के मँजर बहुत हैं
ये दिल रुसवाइयों और गमों को छुपाये हुए है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२१ } {June 2013}





नजर ही नहीं जब माशूक पर तुम्हारी
तब तुम उससे इश्क निभाओगे कैसे।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२० } {June 2013}





सुधियों के दर्पण में आज अचानक ही
मोहक छवि का प्रतिबिम्ब उभर आया
बिखरे केश, मादक नयन, कामिनी रूप
आभासित कौमुदी कान्ति की प्रति छाया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१९ } {June 2013}




ज़िंदगी ताजी हवा सी प्यारी लगने लगी
ये उनकी मोहब्बत का ही कमाल है हुजूर।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१८ } {June 2013}





इस बार मौसम का मिजाज बहुत वहशतअंगेज़ है
आसमाँ में बादल छाये और जंगल समन्दर हो गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१७ } {June 2013}





कुदरत ने जमीं पर अजब पेचोताब बरपा है
दरिया समन्दर हो चली पत्थर पिघल उठे।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१६ } {June 2013}





अगर. मुआनसत नहीं तो कुछ भी नहीं
अगर. निस्बत. नहीं. तो. कुछ. भी नहीं
और. जो. कुछ. भी. हो. हम. में. लेकिन
अगर आदमियत नहीं तो कुछ भी नहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


मुआनसत = दोस्ती
निस्बत = लगाव

{ ६१५ } {June 2013}





इस बार के बादल ने बदला है अजब सा तेवर
शैतान को बख्शते और इंसान पर बरसते हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१४ } {June 2013}





एक भयानक मंजर ने नींद से मरहूम कर दिया
ना-मालूम और कितने मँजर दिखायेगी ज़िन्दगी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, June 25, 2013

{ ६१३ } {June 2013}





साहिल से ही जो देखे लहरों का उठना गिरना
उसको अन्दाज न होता सागर की गहराई का।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१२ } {June 2013}





गुटनिरपेक्ष, सत्ता-सापेक्ष और जोड-तोड
छल-छन्द, मिथ्या-कथन की होडम होड
एतराज, आरोप - प्रत्यारोप, तुष्टीकरण
प्रलोभन-आश्वासन बने राजनैतिक कोढ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६११ } {June 2013}





तरह-तरह के तमाशे हो रहे हैं आज सियासत मे
कभी नाआश्ना है दोस्त तो हमसाये हुए अजनबी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१० } {June 2013}





आस के गगन पर पँछी सा उडता हूँ
दिल पर तीरो-खँजर क्यों चलाते हो
छेड कर उन भूली यादों की धुन को
दिल के सोये ज़ख्म क्यों जगाते हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०९ } {June 2013}





गमगीन न हो जायें वो कहीं इसलिये
अपने दिल के ज़ख्म छिपाए रहता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०८ } {June 2013}





रोज-रोज चेहरे बदला करते हैं
वो कभी कुछ तो कभी कुछ है
जब भी देखता करीब से उन्हे
आदमी के सिवा सभी कुछ हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०७ } {June 2013}





भटक रहा इधर-उधर सच की तलाश में
और किसी काम न आ पाई ये ज़िन्दगी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, June 24, 2013

{ ६०६ } {June 2013}





जिसके लिये मेरा दिल बेकरार था अब तक
साँस-साँस में जिसका इंतज़ार था अब तक
हम आ पहुँचे है उसके दिल की वादियों में
खनक रहे हृदय-वीणा के तार-तार अब तक।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०५ } {June 2013}




इश्क के साए मे बसा ये शहर क्या खूब है
आशिक खुद को यहाँ महफ़ूज़ समझते है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०४ } {June 2013}





शूल को शूल कब अखरते हैं
प्रेत खुद से कब डरा करते हैं
संसार का एक सत्य ये भी है
साँप अपने जहर से न मरते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०३ } {June 2013}





आज स्वयं को अहम छलने लगा है
होम करते-करते हाथ जलने लगा है
प्रीत-प्यार की बेल कैसे फ़ूले-फ़लेगी
जब स्वार्थ ही हरतरफ़ पलने लगा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०२ } {June 2013}





यादों के उमडे जब भी बादल
पलकें न कर तू अपनी नम
अश्रुओं को बनाकर सियाही
उठा कलम लिख अपने गम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, June 8, 2013

{ ६०१ } {June 2013}





न मिला मौका जिसे मोहब्बत में डूब जाने का
सिसकती उसकी ज़िंदगी, जीस्त की राहों में।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६०० } {June 2013}




जुस्तजू थी मुझे तसव्वुर में उभरे हुए नक्श की
महफ़िल-महफ़िल ढूँढा उसे पर पा सका न अभी
ये आपके हुस्न, कातिल नजर का ही करिश्मा है
आपकी महफ़िल छोड कर फ़िर जा न सका कभी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९९ } {June 2013}





जुबाँ पर फ़ाहिश लफ़्ज़ों को आने न देना
गर्म लावे से ज्यादा असर कर जाते हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९८ } {June 2013}





हम तो मानते थे हर शख्स अपना ही तो है, मगर
आज हम ढूँढते इर्द-गिर्द वो अपने हमारे कहाँ गये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९७ } {June 2013}





साबुत बचा जिस्म पर बहुत कुछ टूट गया
ज़ख्मी ज़ज़्बातों का बोझ उठाये फ़िरता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९६ } {June 2013}





एक उम्र बीती थी जिस मँजर को बसाने के लिये
रश्क की चिंगारी ने पलभर में उसे खाक कर डाला।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९५ } {June 2013}





एक चलती सी सुई, एक साथी मन
न सुई कभी थमती न थमता है मन
सुई कभी झुकती इधर तो मन उधर
जीवन की आपाधापी से बोझिल तन।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९४ } {June 2013}





जिस परिंदे की परवाज़ में जोशो-जुनूँ नहीं शामिल
उसके खातिर दुनिया में आबो-दाना भी मुहाल है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९३ } {June 2013}





आज चहुँ दिशाओं में ये कैसा हो रहा तमाशा
पहले बेधते हृदय को फ़िर देते झूठी दिलासा
कहते मन-हृदय सब तो कर दिया तेरे नाम
पर सत्य ये कि ये मात्र मुख शोभा की भाषा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९२ } {June 2013}





ये कैसा नशा आँखों में छा गया
हरतरफ़ तुम नज़र आने लगे हो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९१ } {June 2013}





जमाना ढूँढता है जिसे दुनिया की भीड - भाड में
मेरे दिल में बसा गई है वो मोहब्बत की हकीकत।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९० } {June 2013}





उनको देख कर यही सोंचता रह जाता हूँ
कि रश्क में अपने भी दुश्मन हो जाते हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८९ } {June 2013}





नाराज हो कर माशूक कभी दिल को तडपाता है
फ़िर हो के खुश आशिक के पहलू में आ जाता है
खुद को इन नजरों से छुपाना छोड रूबरू हो कर
वो मौसमे-वस्ल में प्यार के गीत गुनगुनाता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८८ } {June 2013}





काश हम न साथ-साथ चलते
बीच राह में न यूँ हाथ मलते
डालियों पर उगे खार हो तुम
कलियों सँग छुप कर पलते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८७ ) {June 2013}





सुकूँ के नाम पर हर दम गदर की बात करते हैं
बन्द मुँह खुलता जब भी जहर सी बात करते हैं
बता के हमें अपना मसीहा-ए-ज़िन्दगी बन बैठे
अब हुआ जाहिर वो किस कदर की बात करते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, June 5, 2013

{ ५८६ } {June 2013}





रोटियों के वास्ते रोता है आदमी
रोटियाँ देख कर गाता है आदमी
बेबसी की बैसाखी को थामे हुए
हर मुश्किल सह जाता है आदमी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८५ } {June 2013}





आप लाख दिलदार बना करें
पर हुस्न होता बडा दगाबाज है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८४ } {June 2013}





ग्यान और धर्म का बाजार नर्म है
बुद्धि सर्द हो गई और पँगु कर्म है
कथन और क्रिया में तलाक हुआ
अर्थ ही समर्थ व्यर्थ कर्म-धर्म है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, June 4, 2013

{ ५८३ } {June 2013}





होंगीं रँगीनियाँ खिल उठेंगी बहारें ज़िन्दगी में आपके
मुझे अपने दिल में बसा के, प्यार मुझको अता करें।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, June 3, 2013

{ ५८२ } {June 2013}





मँजरियों की यादे उमड-घुमड झूल रहीं झूले पर
भूल गये हो तुम लेकिन हम कब भूले इसे मगर
नयनों से वर्षा की बौछारें निश दिन झरती रहती
मुस्कानों की लिये पालकी कब से तक रही डगर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८१ } {June 2013}





लाज से मुंद-मुंद जाते है नयना
खिलखिला रही दिल की दुनिया
रुख पे ढुलके आँसू लगते बोसा
मँद - मँद मुस्कुरा रही कल्पना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८० } {June 2013}





हे भगवन ! तेरी दुनिया में ये क्या हो रहा है?
तेरी सौगात ज़िन्दगी को मानुस बस ढो रहा है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल