जुस्तजू थी मुझे तसव्वुर में उभरे हुए नक्श की
महफ़िल-महफ़िल ढूँढा उसे पर पा सका न अभी
ये आपके हुस्न, कातिल नजर का ही करिश्मा है
आपकी महफ़िल छोड कर फ़िर जा न सका कभी।।
आज चहुँ दिशाओं में ये कैसा हो रहा तमाशा
पहले बेधते हृदय को फ़िर देते झूठी दिलासा
कहते मन-हृदय सब तो कर दिया तेरे नाम
पर सत्य ये कि ये मात्र मुख शोभा की भाषा।।
नाराज हो कर माशूक कभी दिल को तडपाता है
फ़िर हो के खुश आशिक के पहलू में आ जाता है
खुद को इन नजरों से छुपाना छोड रूबरू हो कर
वो मौसमे-वस्ल में प्यार के गीत गुनगुनाता है।।
सुकूँ के नाम पर हर दम गदर की बात करते हैं
बन्द मुँह खुलता जब भी जहर सी बात करते हैं
बता के हमें अपना मसीहा-ए-ज़िन्दगी बन बैठे
अब हुआ जाहिर वो किस कदर की बात करते हैं।।
मँजरियों की यादे उमड-घुमड झूल रहीं झूले पर
भूल गये हो तुम लेकिन हम कब भूले इसे मगर
नयनों से वर्षा की बौछारें निश दिन झरती रहती
मुस्कानों की लिये पालकी कब से तक रही डगर।।