चरित्रहीन हो गई निर्लज्ज रोशनी संयम साधे अँधेरा है
रस्सियों. का साँप ले कर डरा रहा, राजनैतिक सपेरा है
भ्रष्टाचरण चहुँ ओर छाया भयानक काले कथानक सा
देश. की तलैया में, बंशी डाल कर बैठा विदेशी मछेरा है।।
बह. रही हवा. गुमसुम, शबनम. फ़िर रो रही
सन्नाटों. की आवाजों. में भोर. कहीं. खो रही
चिलचिलाती. धूप मे निष्प्राण. खड़ी. प्रतीक्षा
सुधियों की साँसें चाँदनी के तिमिर में रो रहीं।।
सब कुछ लुटा दिया अपना मैंनें, अब कहने को कुछ न रहा
होठों पर दर्द उभरा करता, मगर रहा संयमित कुछ न कहा
प्याले में ढ़ाल-ढ़ाल कर पिया किया, पीड़ा की कड़वी हाला
उतरा मन्थन की सरिता में, कुछ इधर बहा कुछ उधर बहा।।
जो बीत गया अब उससे द्रोह-मोह क्या करना
क्षण-प्रतिक्षण लगन से ध्वनि-सम है बहना
जाकर कह दो पथ की बाधाओं से हमें न छेड़ें
हम अनन्त पथ के राही अब न हमको थमना।।
फ़ैल रहा गहरा धुआँ हम पी रहे कड़वी हवा
जियें कबतक हम पी के केवल दूधिया दवा
फ़ैला हुआ है हर तरफ़ चमकीला भ्रमजाल
जल रही ज़िन्दगी जैसे चूल्हे पर खाली तवा।।
प्राण. वीणा. का सुकोमल. तार. सोता. नहीं है
और हमारे. प्राण. का संगीत. भी रोता. नहीं है
मैं. विरह. में मिलन. की याद. करने. लगा. हूँ
मिलन की मधुभरी स्मृति हृदय खोता नहीं है।।