बज रहीं कहीं शहनाइयाँ, कहीं मातम छाया निगाहों में
हँसती हैं कहीं रँगरेलियाँ, कोई सिमटा हुआ है आहों में
करता बल नग्न नर्तन, कहीं करुणा काँपती कराहों में
पुज रही हर तरफ़ दानवता, रो रही मनुष्यता राहों मे।।
तुझे चाहा है, तुझे अपनी आँखों में बसाया है
तुझसे किया है इश्क तेरा इश्क आजमाया है
मेरी नजरों पे अक्श रहता है सिर्फ़ तुम्हारा ही
मेरा हर गीत तुम हो तुमको ही गुनगुनाया है।।