Saturday, January 31, 2015

{ ८६९ } {Jan 2015}





न होता ये जोशे-मोहब्बत, ये रँगीन चाहत
अगर तुम सी दीवानी पास हमारे न होती।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८६८ } {Jan 2015}





गीत गाती हो जब भी तुम तो
हर साज भीग-भीग जाता है
जाने क्यों तुम्हारे नगमों में
समाया दुख-दर्द का नाता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८६७ } {Jan 2015}





जो अक्स दिल में उतार सकूँ कहीं वो सूरत तो मिले
जानता हूँ ज़िन्दगी की हर ख्वाहिश पूरी नहीं होती।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८६६ } {Jan 2015}





आज सँवरे तो कल बिखर जाये
खुशबुओं की तरह निखर जाये
दिल की बस इतनी ही दास्तान है
कभी दरिया चढ़े कभी उतर जाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, January 30, 2015

{ ८६५ } {Jan 2015}





गुलशन में होते हैं काँटे भी अपना दामन बचा कर चल
फ़ूलों की ज़ुस्तज़ू में खारों से उलझना अच्छा तो नहीं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८६४ } {Jan 2015}





तोड़ ही दिया जब अरमानों से भरा दिल
अब ज़ख्म को सहलाने से क्या फ़ायदा।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८६३ } {Jan 2015}





आइने भी चिटक जाते हैं देख के तेरा हुस्न
तुम यूँ न दरपन के सामने अँगड़ाया करो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८६२ } {Jan 2015}





ज़िन्दगी में दर्द मिले हैं बेशुमार पर
मौरूसी में आई खुशी बस जरा सी है
आँसुओं का है जन्म से ही नाता जुड़ा
प्राण हुए बेचैन रूह आज भी प्यासी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, January 27, 2015

{ ८६१ } {Jan 2015}





उड़ रहा मोहब्बत का परिन्दा आसमान में
हमारा आशियाँ आज फ़िर से निखर गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८६० } {Jan 2015}





तुम मेरे कुछ नहीं लगते मगर जाने-हयात
दिल की हर धड़कन में बसे तुम ही तुम हो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५९ } {Jan 2015}





कितने मासूम होते हैं गुलशन मे खिले हुए ये महकते फ़ूल
चमन में मँडराते हर भँवरे को अपना दोस्त समझ लेते हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५८ } {Jan 2015}





वो दोस्त है या कि दोस्त नुमा दुश्मन है
रहगुजर में हमारी जो पत्थर सजा रहा।

-- गोपल कृष्ण शुक्ल

Saturday, January 24, 2015

{ ८५७ } {Jan 2015}





जो गाते थे समवेत स्वरों में दिल की मीठी थापों पर
आज वही कर गये अँधियारा उजली-उजली रातों पर।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, January 22, 2015

{ ८५६ } {Jan 2015}





गगन. तक. चाँदनी. ही. चाँदनी है
प्रणय. के ज्वार. सी उन्मादिनी है
तुम्हारे. रूप के मधु-चषक पी कर
बहकी-बहकी हुई सी ये यामिनी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५५ } {Jan 2015}





कोई खुशी मेरे घर तक आ ही न सकी
संगसार राहों में शायद भटक गई होगी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५४ } {Jan 2015}






खाक में मिल गये टूट कर आँख से आँसू
लहूलुहान पड़ा है जब से जमीं पर सूरज।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५३ } {Dec 2014}





खुद अपने. वजूद को. हमने. कभी. जिया नहीं
ज़िंदगी. मे ज़िंदगी. को ज़िंदगी सा जिया नहीं
पाँव. ने ही. हौसलों. का साथ छोड़ा है हर दफ़ा
अब कजा से कैसा डर जब ज़िंदगी जिया नहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५२ } {Dec 2014}





ज़िन्दगी के अर्थ अब खो गये हैं
निरर्थक शब्द सार्थक हो गये हैं
फ़सल कट रही पीड़ा दुख की ही
शायद जमीं में काँटे बो गये हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५१ } {Dec 2014}





नीड़ दूर नहीं तेरा विहँग
तेरा ही है मेरा अँग-अँग
मै हूँ तेरा ही तू भी है मेरी
आ उड़ चलें दूर बन पतंग।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



{ ८५० } {Dec 2014}





खामोशी. नहीं. अच्छी इजहार तो कर
इश्क. हो गया है हमसे इकरार तो कर
इक. न. इक. दिन. वस्ल. होगा. जरूर
किस्मत में है वो पल इन्तजार तो कर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल