गुलों की खुशबू, चमन का निखार तुम हो
ज़िन्दगी-ए-चमन की फ़सले बहार तुम हो
तेरे बगैर वीरान-बियाबाँ हो जाता है ये दिल
मेरी हर नज़र का सुरूर तुम खुमार तुम हो।।
खो गया है सूरज कहीं पर दूर लगता है सबेरा
रिक्तता ही रिक्तता है ज़िंदगी का पथ अंधेरा
खोजते है इस बियाबान में किसे ये प्राण मेरे
वन-उपवन में हरतरफ़ हो गया तम का बसेरा।।
सन्नाटा ठहरा हुआ अन्तरतम की घाटी में
छन्द नहीं उगते हैं अब आँसुओं की माटी में
माथे की शिकनों में सम्बन्ध विलीन हो रहे
मौन हुई भावों की भाषा प्रश्नों की तैलाटी में।।