Wednesday, February 29, 2012

{ १९५ } {Feb 2012}





कौन है अपना, है कौन पराया
न कोई अपना, कोई न पराया
जन-जग-व्यवहार सब है झूठा
है ये माया कोई समझ न पाया ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९४ } {Feb 2012}




बदली कहाँ-कहाँ घिरी है जानते नही?
बिजली कहाँ-कहाँ गिरी है जानते नही?
ये हैं राजे-मोहब्बत कहीं खुल न जायें
खत्म नही होता इश्के-पैहम जानते नही?

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९३ } {Feb 2012}





प्यार् में कभी भी ख्वाहिशें नही होती
प्यार् की कोई भी पैमाइशे नही होती
प्यार ज़िन्दा है सिर्फ़् प्यार् के नाम् पे
प्यार मे शक् की गुंजाइशें नही होती ।।

-- गोपाल् कृष्ण् शुक्ल्

Monday, February 27, 2012

{ १९२ } {Feb 2012}





इश्क में जीना इश्क में मरना
इश्क है दरिया इश्क सफ़ीना
इश्क करे वो ही इसको जाने
इश्क ही मौला इश्क मदीना ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९१ } {Feb 2012}





वो आजाद थे, आजाद ही शहीद हुए
जन-जन भारत के उनके मुरीद हुए
पर आज भारत की कथा वीरानी है
हम सत्ता-गुलामों के जर खरीद हुए ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९० } {Feb 2012}





क्रान्ति सत्य होती उस समाज की
होती जहाँ पर शक्ति की पूजा है
बल है प्रबक विश्वास क्रान्ति का
कुछ और न उपाय बचता दूजा है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८९ } {Feb 2012}





स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी क्रान्तिकारी "पण्डित चन्द्रशेषर आजाद" को उनकी पुण्यतिथि 27 फ़रवरी पर श्रद्धा सुमन अर्पित.....!!!

देश हित शहीद होने वालों में अमर आजाद चंद्रशेखर
शहीदी-टोली में प्रथम नाम अमर आजाद चंद्रशेखर।।

निडरता के सजीव विग्रह प्रवाहित जिनकी रग में वीरत्व
गुलाम भारत देश के लिये कर दिया न्योछावर सर्चस्व
दृष्टिगत कहीं नहीं अन्यत्र, मातृ भू हित ऐसा अपनत्व

वीर बाँके शहीद को दे रहा श्रद्धांजलि भारत के नारी -नर
देश हित शहीद होने वालों में अमर आजाद चंद्रशेखर ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ १८८ } {Feb 2012}





अजीब आलम है बदहवासी का
सिर्फ़ ठोकरों पे ही मैं डोलता हूँ
भीड के इस अथाह समन्दर में
खुद को ही मैं ढूँढता-टटोलता हूँ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८७ } {Feb 2012}





गीत - हँस लाये सन्देश
प्रिये की पुलक प्रीति का
प्रमुदित मन प्राण हुए
महकी कामना वीथिका ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८६ } {Feb 2012}





अभी फ़िर से क्रान्ति होनी है भारत में
जरूर होगी अभी वो श्रृंगार कर रही है
धधकेगी फ़िर महाक्रान्ति की ज्वाला
देखो वह हर दिशा मे हुँकार भर रही है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८५ } {Feb 2012}






तुम मेरा दुख-दर्द टाल सकते थे
मुझे उलझनों में सँभाल सकते थे
उलझा दी है कश्ती मेरी भँवर में
मुझे दरिया से निकाल सकते थे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८४ } {Feb 2012}





आँधियों ने लिखा है मेरी साँसों का इतिहास
जन्म से ढो रहा जीवन का अयाचित वनवास
टूटना ही नियति है इन उपेक्षित पत्थरों का
धूल से उड रहे अधूरी आशाओं के उच्छवास ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


Thursday, February 23, 2012

{ १८३ } {Feb 2012}





सागर के जोश की तरह तेरा उफ़नता है शबाब
कैसे बचाऊं तुमको यह जमाना बहुत है खराब
पी लेते हैं पलकों से उसे मये-पैमाना जानकर
तेरी आँखों से जब-जब भी छलकती है सराब ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८२ } {Feb 2012}





सरिता का जल कहता चलना ही ज़िन्दगी है
चमन का फ़ूल कहता खिलना ही ज़िन्दगी है
गगन में चमकते सूर्य-चन्द्र-सितारे और इस
माटी के मौन दर्द को समझना ही ज़िन्दगी है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८१ } {Feb 2012}






अनुकूल दिशाओं में तुम
अनोखी आशाओं में तुम
चाँदनी निशाओं में तुम
हर जिग्यासाओं में तुम ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १८० } {Feb 2012}





वो नूरे-मुजस्सम अचानक आ गई
सामने मुझ को पा कर घबरा गई
बहुत बचाई नजरें मुझसे, लेकिन
बचाते बचाते भी नजरें टकरा गईं ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७९ } {Feb 2012}





रहा नही ईमान अब प्यार हुआ बाजार
अँधों की भीड में इश्क का होए व्यापार
क्रूरतम नजरें हुईं मुस्काने हुईं कुटिल
रेतीली जमीने बनी हैं प्यार का आधार ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७८ } {Feb 2012}






रात अलकों में, भोर पलकों में
जैसे हों चाँद-चकोर पलकों में
मुखडा लगता है मए - पैमाना
मदिरा की है हिलोर पलकों में ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७७ } {Feb 2012}





पल-पल आती-जाती रहती है
मेरी चाहत की दरिया में लहरें
युग का बेसुध सा तट मैं आखिर
ये चंचल आँचल क्यों न फ़हरें ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७६ } {Feb 2012}





दिखता है वो जो मेरा साया
वो आज तक बना है पराया
अँधेरों की ही धूप दिखती है
शायद वो रोशनी का है साया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७५ } {Feb 2012}





प्रेम की करो प्रतिष्ठा
प्रेम जीवन का साथी है
प्रेम जीवन का उल्लास
प्रेम ही मथुरा काशी है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७४ } {Feb 2012}





जगमगाता हुआ शबाब आये
एक महका हुआ गुलाब आये
बडी मुश्किल से है प्यार आता
जब आये तो बे-हिसाब आये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७३ } {Feb 2012}





न रहा हाथों को काम, खेतों को पानी है
कर्ज में आकंठ डूब चुकी कौम की जवानी है
देश के तालाबों पर आ बैठा है मछेरा विदेशी
ऐसी दुर्दशा की हो गई मेरे देश की कहानी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७२ } {Feb 2012}




बुझा दीप फ़िर जलाना होगा
शूल पंथ का अब हटाना होगा
मच रही त्राहि-त्राहि हिन्द में
ध्वज भगवा फ़हराना होगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७१ } {Feb 2012}





तन का स्पंदन समझ रहा हूँ
स्वर का बुझापन समझ रहा हूँ
सारे बादल बिन बरसे लैट गये
मन का सूनापन समझ रहा हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १७० } {Feb 2012}





बहुत जोरों पर है हुस्नो-ताब
हालात हुए अब बहुत खराब
इश्क क्यों रहे अपनी हदों में
हो जाये जब हुस्न बेहिजाब।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



Monday, February 13, 2012

{ १६९ } {Feb 2012}






अब यही चलन है सियासत का
हर तरफ़ बैर के फ़ैले बवंडर है
फ़र्क ऊंचाइयों मे होगा लेकिन
पशुता-नीचता में सभी बराबर हैं ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १६८ } {Feb 2012}






चाँदनी बद-हवास लगती है
रोशनी बे-लिबास लगती है
आप को देख कर जाने क्यो
मेरे लबों को प्यास लगती है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १६७ } {Feb 2012}






बिखरा है जहर क्यारी, कुंज और नीड में
भटक गई है सुगन्ध, बबूलों की भीड में
रो-रो के कह रही तस्वीर अपने वतन की
बढने लगी दूरी रक्त शिराओं और रीढ मॆं ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १६६ } {Feb 2012}






डबडबाये रहते नयन अँधेरे मे
रात भर रोशनी को तरसे हम
मौत अक्सर मिली हमें लेकिन
उम्र भर ज़िन्दगी को तरसे हम ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



{ १६५ } {Feb 2012}






प्रतिभा का पलायन हो गया है, कहना गलत है
युग का मूक गायन हो गया है. कहना गलत है
देश के रहनुमा अन्धे थे अब बहरे भी हो गये
बदलो झूठी यह परिपाटी, अब सहना गलत है ।।

--गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १६४ } {Feb 2012}






प्यार की रूह में गज़ल की तरह
रूप की झील में कमल की तरह
तुम होते हो जब साथ, दिन मेरा
बीत जाता है एक पल की तरह ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १६३ } {Feb 2012}






शाम का बेसब्र इन्तजार करता हूँ
सुबह पर बहुत एतबार करता हूँ
सिर्फ़ इस एक फ़ूल की खातिर
सारी बगिया से प्यार करता हूँ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ १६२ } {Feb 2012}






जग की मर्यादा में रहकर नारी
प्रतिपल ही वियोग जीती है
आहों के स्वर में आँसू गाती
जग की यह कैसी कुरीति है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{१६१ } {Feb 2012}






यूँ तो प्यासा भी रह लिया लेकिन
इस प्यास की भी अजीब माया है
राह मे तिलमिलाई जब - जब भी
तभी कोई पनघट करीब आया है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १६० } {Feb 2012}






अपनी इन चंद पंक्तियों में सजाकर मैं
जन-जन की बेबसी का पयाम लाया हूँ
फ़रेबी राजनैतिग्यों के नाम आज देखो
जन-जन के आँसुओं का सलाम लाया हूँ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १५९ } {Feb 2012}





अभी तुफ़ानो का असर बाकी है
तडपती लहरों का कहर बाकी है
न बुझाओ अभी चिरागे-उम्मीद
पास ही है मंजिल, सहर बाकी है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १५८ } {Feb 2012}






समय गढता रूप को, पर प्रीति टूटा खिलौना
छलछला जाते नयन जब टूटता सपन सलोना
घोसला भाता नहीं तिनका-तिनका हो बिखरता
ज़िन्दगी है एक घना वन, चैन काँटों का बिछौना ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल .

{ १५७ } {Feb 2012}






चाहत की बाहों में अब मिलन के इन्द्रधनुष रच डालो
माथे की शकनो में उन खोए सम्बन्धो को दुलरा लो
सन्नाटा पसरा अन्तर-घाटी में, राग नही आँसू-माटी मे
अएपण के दर्पण से अब उलझे विश्वासों को सुलझा लो ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


Saturday, February 11, 2012

{ १५६ } {Feb 2012}





देश-प्रेम के आज नये अर्थ हो गये
चारो ओर फ़ैला है काला सा प्रकाश
पास हो कर भी दूर है प्रेमोल्लास
देश-प्रेम के गीत सब व्यर्थ हो गये
देश-प्रेम के आज नये अर्थ हो गये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ १५५ } {Feb 2012}





प्रेम मे जैसे मौन खलबली सी तुम
मोहक नाजुक मादक भली सी तुम
मुस्कुराती जब-जब भी अल्हडता से
लगो कल्पनाकुँज की कली सी तुम ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ १५४ } {Feb 2012}





देश अब गुलामी के इतिहास से उद्धार चाहता है
देश वासियों तुमसे देश अब उपकार चाहता है
उलझी गणित सुलझाई शून्य का उपहार देकर
हिन्द-संस्कृति का उपहास अब उपचार चाहता है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ १५३ } {Feb 2012}





कोमल कलियों की पाँखुरियाँ
खिल गईं, खुल गए बन्द द्वार
जीवन मरुथल को सींच गईं
ऋतु बसन्त की रस -फ़ुहार ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १५२ } {Feb 2012}





बदलियों में छिप रही हैं चाँद की मखमूर आँखे
नूर-ए-हुस्ना की मस्तियों मे हो रही हैं चूर आँखें
चार हो या लाचार हों, पर दूर से नजदीक आकर
हो रही हैं मस्त प्रीति के माधुर्य से भरपूर आँखें ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १५१ } {Feb 2012}





खाली-खाली जेब कहे, ये कैसा गणतंत्र है
अन्न को तरसते पेट, ये कैसा गणतंत्र है
गुम है दिल की मस्ती, ये कैसा गणतंत्र है
धन्य-धन्य भ्रष्टतंत्र, ये कैसा गणतंत्र है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, February 10, 2012

{ १५० } {Feb 2012}





प्रीति में जब से रमा है, दिव्य मेरा मन
देह यह माटी की महकती, हो गई चंदन
मुँद गईं पलकें देखने लगी कुछ मन में
भावना अनुभूतियों का कर रही वन्दन ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १४९ } {Feb 2012}





नजर आता हूँ जैसा नहीं हूँ मै वैसा
जैसा समझते मुझे नहीं हूँ मै वैसा
खुद अपने से ऐब अपने छुपाता हूँ
मुझको खुद नही मालूम हूँ मै कैसा ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ १४८ } {Feb 2012}





नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की जन्ती पर शत-शत नमन

थर-थर करती धरती सारी
टूट-टूट कर गिरते थे तारे
तडप उठती लहरें सागर की
हिम पर्वत भी डगमग डोले
सूरज भूले बरसाना अंगारे
ऐसी थी हुँकर सुभाष की
दुश्मन ढूँढे गली-गलियारे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{१४७ } {Feb 2012}





ज़िन्दगी में आकर रंग भर दो तुम
इस ज़िन्दगी का हर वरक सादा है
आकर मुझको कुछ तो प्यार दे दो
मेरा दामन-ए-दिल बहुत कुशादा है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १४६ } {Feb 2012}





यह जीवन प्यासा पनघट है
आकुल तृष्णा की लहरों का
अन्तर मे इसके जमघट है
यह जीवन प्यासा पनघट है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल