Tuesday, December 25, 2012

{ ४५२ } {Dec 2012}





अपने ही परिवेश से अंजान हो
उफ़ कितने बेसुध से इन्सान हो
नाव मन की कौन तट पर थमे
जब अपना दिल ही बेईमान हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५१ } {Dec 2012}





सुख क्षण-भँगुर, कष्ट अमर है निर्झर सा जीवन दाता है
धूमिल प्रतिभा को चमका कर जीवन में निखार लाता है
ठाठ-बाट, सुख-सुविधा, थक कर पथ में रुक-रुक जाते
पर संघर्ष, कष्ट, साहस ही कदम मिला मँजिल पाता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५० } {Dec 2012}






मँजर जब वो देखा आँखों में नमी हुई
और दाँतों तले हैं उँगलियाँ भी दबी हुई
जिस दिश जिस तरफ़ भी देखा हमने
हर सिम्त दिखे आग ही आग लगी हुई
कहने को तो अमन चैन है निज़ाम में
पर दहशत तले हर ज़िन्दगी दबी हुई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४९ } {Dec 2012}





कभी हँसती है तो कभी रुलाती है दुनिया
राह में फ़ूल कभी काँटे बिछाती है दुनिया
न बन कमजोर, सीना तान के चले चलो
बुजदिलों को हर वक्त सताती है दुनिया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४८ } {Dec 2012}






निर्बल मत बनो दानवों के सामने
असमर्थ न बनो विघ्नों के सामने
तुम दुर्गा हो काली हो दहला दोगी
छुपते हैं बादल किरणो के सामने।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४७ } {Dec 2012}





जेहन में ख्वाबों का मंजर है
पलकें आँसुओं का समन्दर है
मैं खाक तू आसमाँ का चाँद
इसलिये दिल पे रखा पत्थर है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४६ } {Dec 2012}





अलसाई सी आँखे तेरी
उठती-गिरती साँसे तेरी
चँचल चितवन छेड रही
शर्माई सी मुस्काने तेरी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४५ } {Dec 2012}





आवाजें लहरों के रोने की सुनकर, घायल हुआ सूनापन
आसमानी शबनम के आँसू से भीगी सुबह, खिले चमन
रातों को कोई गाता रहता करुण-स्वर से सूने पनघट में
बेचैन लिपटने को साहिल से उफ़नाती नदिया का यौवन।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४४ } {Dec 2012}





लहर के मानिन्द टकराते रहे
नित नये कूलों को दुलराते रहे
हम समर्पण के स्वभाव वाले
फ़ूल बनकर गँध बिखराते रहे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४३ } {Dec 2012}





पाकर तुमको हम मुस्काते
जीवन तुम्हारे साथ बिताते
कैसे गुजरे मेरे ये पल-छिन
तुमसे मिल तुमको बतलाते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४२ } {Dec 2012}






अपने मन की बातों को मन ही मन में कहता हूँ
दर्द से बन गया रिश्ता अपना, आहों में बहता हूँ
भीगी आँखें, बोझिल पलकें, बन गये मेरे श्रँगार
भावों में उम्र कट गयी इससे सब कुछ सहता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, December 24, 2012

{ ४४१ } {Dec 2012}





कोई जी रहा है, ज़िन्दगी कोई ढो रहा है
कोई फ़ूल चमन में, कोई काँटे बो रहा है
लहू पी रहा है सुबह का ये शातिर अँधेरा
हे ! ईश्वर तेरी दुनिया में ये क्या हो रहा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४० } {Dec 2012}






यह तकदीर नही मन का अंतर है
हर गुल फ़ूला पर महक नहीं पाया
काँटों की चुभन का दर्द सहा जिसने
बस वो ही गुल खिल कर मुस्काया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३९ } {Dec 2012}






जब-जब मन के पृष्ठ खुलेंगें
कोई सजल सा गीत गढेगा
साँस-स्वाँस विरागिन होगी
हर आँसू को मनमीत पढेगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३८ } {Dec 2012}





पलता स्नेह पोथी और
क्षणवादी संस्कृति में अब
निज संबन्धों की मति
क्या पता बदल जाये कब।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३७ } {Dec 2012}





हवाओं को मन-सुमन लुभाने लगा
स्वप्नों का चमन गँध लुटाने लगा
जैसे मिला हो रात का प्यारा चँद्रमा
यूँ हुस्न पर इश्क का रँग छाने लगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३६ } {Dec 2012}





चाहता हूँ कि विछोह से पहले
और कुछ देर साथ जी लूँ मैं
सहेज लूँ मन में एक सपना
एक मुस्कान और पी लूँ मैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३५ } {Dec 2012}





एक ही बार यह हृदय पराजित होता किसी हृदय से
यही पराजय सुखमय लगती सबसे बडी विजय से
सौन्दर्य-देवि का तभी मन करता है पूजन-अर्चन
फ़िर सुवासित हो उठता अन्तर्मन गँध-मलय से।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३४ } {Dec 2012}





मेरे हर लफ़्ज़ में तेरे ही भाव हैं
सिर्फ़ तू ही तो मेरा स्वभाव है
तू है मेरा चाँद मैं हूँ तेरी चाँदनी
जहाँ पर तू है वहीं मेरा पडाव है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३३ } {Dec 2012}





करवटें बदली कितनी ही बार
पर दर्द का भार न सकी उतार
हाय कठिन है जाने कितनी, ये
भूख की चोट, प्यास की मार।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३२ } {Dec 2012}





तराने उन्ही के आसमानों तक जाते हैं
जिसे सुन रूहों के दिल भी भर आते हैं
रहते हर वक्त जो सोज के समन्दर मे
वही मजहबे-इश्क में शामिल हो पाते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३१ } {Dec 2012}






कैसे कह दूँ कि कुसूर अँधेरों का है
इन उजालों ने भी दर-दर भटकाया
जब ख्वाबों से दिल बहलाना चाहा
तब आँखों ने नींदों से धोखा खाया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३० } {Dec 2012}





दिल में कितने घाव दिये हैं
दर्द इन होठों को ही सिये है
दे कर खुशियाँ उनको सारी
गमों के जख्म हमने लिये हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२९ } {Dec 2012}





मन का मैल हटा कर देखो मन देवालय हो जायेगा
फ़ूलों से अनुराग बढाओ काँटों का भय खो जायेगा
दुविधा के चौराहे पर क्यों चार दिशाओं में भटके हो
मन के मीत बनो, रस्ता जीवन का तय हो जायेगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२८ } {Dec 2012}






मैं वो मुसाफ़िर जो खो गया स्वयं चलते हुए डगर
साँसों के भी पाँव थक चुके खत्म होने को है सफ़र
तन-मन खेल खिलौना बन, खोया भीड तमाशे में
नहीं यहाँ पर हमदर्द है कोई कब छूटेगा ये काराघर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२७ } {Dec 2012}






ये सृष्टि भी एक काव्य है जिसकी
अपनी गति और लय हुआ करती
टूटती है जब कभी भी यह लय तो
भूमि तल पर प्रलय ही हुआ करती।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, December 23, 2012

{ ४२६ } {Dec 2012}





मेघ बन कर रेत में भी साथ दो तो
शूल का अंतःकरण कमल हो जाये
धूप बनकर धुंध में भी साथ दो तो
दर्द का आचरण भी गज़ल हो जाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२५ } {Dec 2012}





मत सहला-दुलरा इस चितवन की भीगी मुस्कान से
अच्छा है सोया रहने दो अब, मेरे इस झंझावात को
रूठ गयी काल्पनिक दुल्हन पीडा घुट-घुट कर रो रही
किसके द्वार टिकाऊँ अब मैं टूटे सपने की बारात को।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२४ } {Dec 2012}





तूफ़ान दर्द के उठे मन की घटाओं से
जकडे हुए हैं चाहतों की श्रृंखलाओं से
गैरों के सामने स्वयं को भूल हम गये
बिखरी ज़िन्दगी बढती कामनाओं से।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२३ } {Dec 2012}





हम बहुत याद आयेंगें, कभी तुमको अकेले में
जब हम खो चुके होंगें, गमे-दुनिया के मेले में
अकेले थे, अकेले हैं, और अकेले ही रहेंगें हम
जैसे चाँद भी है तनहा, किसी गम के झमेले में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, December 22, 2012

{ ४२२ } {Dec 2012}





लिखी भाग्य में अपने तनहाई उदास आँगन की
ओ मनपाँखीं मत निहार ऊँचाई नील गगन की
अपनी ही सूरत काली थी क्या गलती दर्पन की
अब तक ये ही समझे हम परिभाषा जीवन की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२१ } {Dec 2012}





सच्चाई निर्वासित हो कर अब दर-दर आज भटक रही
आज मंथरा की गति देखो निज कौशल पर मटक रही
तुम्हे अनवरत चाटुकारिता पर अभिमान भले होता हो
देश को अवांछित मेहमानों की आवभगत कसक रही।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२० } {Dec 2012}




पुष्पों का भी सानिध्य मिलेगा
पहले काँटों पर तो हम सो लें
निच्छल प्रेम युग की गंगा है
हम सारे पाप सहज ही धो लें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१९ } {Dec 2012}





तुम फ़ूल बन कर मुस्कुराये बाग में
ध्वनि तुम्हारी मिली राग-विराग में
तुम मिले कभी नभ में, कभी थल में
कभी बहते पानी और कभी आग में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१८ } {Dec 2012}





प्रश्नों के जाल हो गये हैं हम
कितने बेहाल हो गये हैं हम
दर्द की मिसाल हो गये हम
बेहया सवाल हो गये हैं हम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१७ } {Dec 2012}





कोई नही जो दिल की धडकन मन की आशा समझे
मैने पर्वत जिनको बनाया, मुझको वो माशा समझे
हर महफ़िल में खुशियाँ दी है मैंने इस दुनिया को
पर मुझको दुनिया वाले केवल एक तमाशा समझे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१६ } {Dec 2012}





हर दिशा के हाथ में पत्थर सजे हैं छोटे बडे
एक सुन्दर काँच का घर है हमारी ज़िन्दगी
हो रहा सिन्धु-मंथन, है कहाँ अमृत घडा
देव-असुरों का समर है अब हमारी ज़िन्दगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१५ } {Dec 2012}





अपनी इन अदाओं को तुम अब समेट लो
हो जायेगी वरना शहर की हवा भी पागल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१४ } {Dec 2012}





मयकदे से इस दिल को कोई गिला नही इसलिये
चलो आज फ़िर साकी से इश्क का इजहार करते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१३ } {Dec 2012}





हिन्द की सेवा से मतलब था उसी से काम था
उसी धुन मे मगन, हर वक्त, सुबहो-शाम था
मैदाने सियासत का था मर्द कभी डरता न था
संसार में गूँजता "शेरे-हिन्द" उसका नाम था।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, December 21, 2012

{ ४१२ } {Dec 2012}






ज़िन्दगी के वास्ते कुछ ख्वाहिशें तो थीं मगर
रेत का दरिया हमारे ख्वाबों में शामिल न था
डूब ही गया होता अगर जरा घबरा गया होता
मैं था वहाँ दूर तक दिखता जहाँ साहिल न था।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४११ } {Dec 2012}





बह उठी दरिया की मौंजें, आँख में उफ़ना समन्दर
कुछ आँसू बह चले हैं, कुछ ठहरे पलकों के अन्दर
हो गये हो तुम दूर जब से छाया भी न पा सके हम
साथ अश्कों ने दिया तब हर डगर हर रहगुजर पर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४१० } {Dec 2012}





मन के मौसम में, दिल की धडकन ने
जब-जब सुख सपनो के फ़ूल खिलाये
अनगिन चित्र बने मन के चित्रपटल पे
लब पे मुस्कानों सँग नैना भर-भर आये।।

-- गोपाल कॄष्ण शुक्ल

{ ४०९ } {Dec 2012}





एक दीप और जले।
चीर अँधकार उजास भर चले।।

भावना निराश हो नहीं
कामना हताश हो नहीं
हृदय उदास हो नहीं
शिथिल प्रयास हो नहीं।।

तूफ़ान में दीप जले।
एक दीप और जले।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०८ } {Dec 2012}





रोज ही होती यहाँगैरतों की मलामत
निकल जाओ बेदाग यही है गनीमत
दबा है ईमान चाँदी के जूतों के नीचे
फ़कत बेईमानों की ऊंची हुई कीमत।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०७ } {Dec 2012}





अभिनन्दन दीपमालिके !!

आशा विश्वासवती हो
साधना सुहागवती हो
साधक को सह सिद्धि दे
जगमग ज्योतित सुमालिके

अभिनन्दन दीपमालिके !!

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, November 18, 2012

{ ४०६ } {Nov 2012}





जाग उठी मन की तरुणाई
अब न कटे ये दूरी तनहाई
बाहों में तुम मुझको भर लो
महक उठी है सारी अमराई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०५ } {Nov 2012}






संत सुख को भी नहीं समझते हैं
और दुख को भी नहीं समझते हैं
इस जग ने समझा कुछ उन्हे ही
जो जग को कुछ नही समझते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०४ } {Nov 2012}





लफ़्ज़ मेरे जुबाँ पे आते-आते
जाने क्यों हैं रुक-रुक से जाते
जब इसके रिश्ते तुमसे हैं गहरे
मौन मधुर स्वर ये किसे सुनाते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०३ } {Nov 2012}






फ़ासलों के इस दौर में बढ रही हैं अब दूरियाँ
वरक भी न भर सके दिल में बसी वो खाइयाँ
संगदिल हैं सभी यहाँ और खून सर्द बर्फ़ सा
प्यासी रह गईं हैं दिल की बेचैन उदासियाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल