Thursday, November 24, 2011

{ ९२ } {Nov 2011}







दीप की लौ मचल रही होगी
रूह करवट बदल रही होगी
रात होगी तुम्हारी आँखों में
नींद बाहर टहल रही होगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ९१ } {Nov 2011}







मुझे रूप के गुलशन में रहने दो
ज़िन्दगी के परहन में रहने दो
गीत पूरा न कर लूँ जब तक
मुझे अपने अंजुमन में रहने दो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ९० } {Nov 2011}







गमों की जो भीड है उसमे
कुछ पुराने और कुछ नये
नींद नही आज भी मुझको
सपने भी वापस चले गये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८९ } {Nov 2011}






डगमगाता है प्यार का संयम
जब उसे कोई रस का सावन दे
एक भौंरा करे भी क्या आखिर
जब कली ही उसे निमंत्रण दे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८८ } {Nov 2011}







आइने में अजनबी की तरह था कोई अक्स बैठा
देखा उसे तो जाना मैंने कि हुस्न करीब आया है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८७ } {Nov 2011}





नारियों में आला, शौर्य शक्ति मे निराला थी बाला
लक्ष्मीबाई अरिदल के लिये थी आफ़त की परकाला।
रानी की कुपित क्रुद्ध दृष्टि से झरते झर-झर अंगारे
देख रानी की दहाड हारे सम दिखते बैरी सारे मन मारे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, November 18, 2011

{ ८६ } {Nov 2011}







आप पर ही एतबार है मुझको
आप से इतना प्यार है मुझको
मेरे पहलू में आप ही हैं फ़िर भी
आप का ही इन्तज़ार है मुझको ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८५ } {Nov 2011}







क्यों अब और कोई ठिकाना तलाश करती हो
बेवफ़ा बनकर क्यों बहाना तलाश करती हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८४ } {Nov 2011}







ज़िन्दगी की उलझनों में, साथ चलते फ़रेबों ने
ज़िन्दगी में खूँ की गर्मी को ही ठन्डा कर डाला।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८३ } {Nov 2011}






मेरे सपने उमर भर सपने ही रहे
जाना कहाँ था, कहाँ लौटा दिया
आस का एक दर्पण अनमोल था
ऐसा टूटा, नियति को पलटा दिया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२ } {Nov 2011}





रोज-रोज चेहरा बदल दिया करता
हम कभी कुछ हैं तो कभी कुछ हैं
देखता हूँ करीब से जब भी खुद को
आदमी के सिवा हम सभी कुछ हैं ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१ } {Nov 2011}






तुम मोहब्बत से काम लेते तो
ये अश्रु भी हास बन गया होता
और कुछ खुशगवार रिश्तों का
सुन्दर इतिहास बन गया होता ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, November 13, 2011

{ ८० } {Nov 2011}







एक मुफ़लिस का नाम हो जाता
शायरी को नई हयात मिल जाती
काश ! इन जलते हुए खयालों को
तेरी ज़ुल्फ़ों की रात मिल जाती ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९ } {Nov 2011}






आपसे न कोई शिकवा है और न आपसे है कोई मलाल,
बरगदों ने हमेशा ही रखा है पंछियों के घोंसलों का खयाल ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, November 12, 2011

{ ७८ } {Nov 2011}







रोटी की ही सब मारामारी है
भूख बनी सबकी लाचारी है
कोई खाता मेवा-सोना-चाँदी
किसी को दाने की दुश्वारी है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७ } {Nov 2011}






ज़िन्दगी तो वह जुआँ जिसमे
न कोई जीता है न कोई हारा है
गर्व करते हो जिस सम्मान पर
उसमें कुछ भी नही तुम्हारा है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७६ } {Nov 2011}






एक वो ही घडी तो गुजरी थी
प्यार के उन रेशमी गुनाहों में
आज तक ढूँढता हूँ मै तुमको
ज़िन्दगी की इन उदास राहों में ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७५ } {Nov 2011}







भीड है बेशुमार चेहरों की
दूर तक बेहिसाब मेला है
मैं इसमे शरीक हूँ लेकिन
आज मन बहुत अकेला है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७४ } {Nov 2011}






तेरी सूरत तो बेहद खूबसूरत है
नाजुक फ़ूल सी हसीन मूरत है
न जाने किस अदा से देखती हो
तेरी चितवन तुमसे खूबसूरत है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, November 6, 2011

{ ७३ } {Nov 2011}





हो गया मन दुखी मनुज होकर
हर कदम पर मिली मुझे ठोकर
जिसमें खिलें फ़ूल कमलिनी के
काश होता गाँव का वो पोखर ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२ } {Nov 2011}






क्या हुआ जो मैं डूबा भँवर में
लोग डूबते हैं यहाँ सफ़ीनों में
आप ओझल हैं जो आँखों से
चन्द लम्हे भी कटॆ महीनों में ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


Friday, November 4, 2011

{ ७१ } {Nov 2011}






रूप का एहतराम करती है
प्यार का इन्तजाम करती है
आपके रूप और संयम को
मेरी कविता सलाम करती है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, November 2, 2011

{ ७० } {Nov 2011}







ज़िन्दगी मे गर खिलखिलाना चाहते हो
मर के भी अपना सर उठाना चाहते हो।

चन्द गमों को हँस-हँस कर पार कर लो
गर खुशियों की जीस्त बनाना चाहते हो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


Tuesday, November 1, 2011

{ ६९ ) {Nov 2011}






मौत पीछे पडी, जिया फ़िर भी
प्यार का आसरा दिया फ़िर भी
आया एक तूफ़ान कयामत का
एक दीपक जला किया फ़िर भी ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल