Tuesday, January 22, 2013

{ ४७० } {Jan 2013}





रँजिश दुश्मनी से इस दुनिया को है प्यार बहुत
अफ़सोस ये कि बस एक प्यार से ही प्यार नही
बाजारे-हुस्न तो मिलेगा हमें हर जगह पर यहाँ
लेकिन ये भी सच है कि इश्क का बाजार नही।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६९ } {Jan 2013}





तुम रहे समझते जीवन के हर पल को प्रिय अपना
हर दिल को मगर भाता रहा कब अधरों का हँसना
साँसों से सुख का नाता केवल क्या इतना सा ही है
जैसे हर रात नैन का चुम्बन लेने आतुर हो सपना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६८ } {Jan 2013}





देखो रो रहे श्वेत कपोत डाल-डाल पर
धैर्य की पूँजी लुटाई, किस कँगाल पर
सत्ता-पिपासुओं के पल्लवित पाप से
सिसक रही माँ भारती अपने हाल पर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, January 21, 2013

{ ४६७ } {Jan 2013}





आसमाँ पर सितारों की महफ़िल उदास है
रहगुजर भी रो रही और मँजिल उदास है
आँखों में आँसुओं के समन्दर उबल रहे
दरिया भी उदास है और साहिल उदास है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६६ } {Jan 2013}





आँखों की पुतली सा हम रखते थे जिनको
आज उन्ही पुतलों से ही फ़िर धोखा खाया
हम भाई-भाई कह कर दुलराते थे जिनको
उनकी डसने की फ़ितरत अब समझ पाया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६५ } {Jan 2013}





गुजरगाह लम्बी, पथरीली भी है
कहीं गुल तो कहीं बिछे हैं नश्तर
चल रही है उलटी, बेरुखी हवायें
गुमराह होने का सता रहा है डर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६४ } {Jan 2013}





चाहे हो सावन का मौसम
चाहे हो पतझड का मौसम
खुशियों के आवरण मे भी
मिले सदा ही हमको गम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६३ } {Jan 2013}





अब कहाँ चमन और कहाँ नमन
सब कर डाला मिलकर के गबन
चैन नहीं कहीं किसी भी छाया में
मिले तपन और काँटों की चुभन।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६२ } {Jan 2013}





तुमने ज़ख्म दिया कुछ ऐसा
सदियों तक जो नहीं भरेगा
दर्द रहेगा जब तक दिल में
तब तक आँसू बहा करेगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६१ } {Jan 2013}





बस टूटने को है दम अँधेरों का
सुबह का इन्तजार ज़िन्दा रख
खुशबुओं की सलामती के लिये
गुल के पहलू में खार ज़िन्दा रख।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६० ) {Jan 2013}





कुछ बिछडे तो कुछ नये मिले
कुछ शिकवे तो कुछ रहे गिले
जीवन के पग-पग पर मुझको
काँटे, गुलशन में छुपे मिले।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५९ } {Jan 2013}





ज़िन्दगी की डगर पर चाहे फ़ैले हों अँधेरे
दुख के बादलों के आवरण कितने भी घेरें
मुस्कान की किरण से तुम रोशनी फ़ैलाओ
दूर तक आयेंगें नजर फ़िर खुशियों के सबेरे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, January 11, 2013

{ ४५८ } {Jan 2013}





रूप तो प्यार के बल पर ज़िन्दा है
ज़िन्दगी इसके बिना शर्मिन्दा है
वैसे तो हर कोई रहता घर में, पर
दिल का बिरला हुआ बाशिन्दा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५७ } {Jan 2013}





काँटों के भी अब जख्म होने लगे हैं
आदमी के हाथ कटीले होने लगे हैं
कोई शख्स जीता नजर नही आता
लोग अब ज़िन्दगी को ढोने लगे हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५६ } {Jan 2013}





आदमी आज खुद से सहमा है
आदमीयत की अँख सहमी है
देश-समाज की हर रौनक, औ’
इंसानियत की आँख सहमी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५५ } {Jan 2013}





अब क्या जँगलों में जा कर हम बसें
शहर की तो हर गली में बसे हैवान हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५४ } {Jan 2013}





कुछ पग दो पग ही साथ हैं चलते
कुछ बस दो चार कदम ही हैं बढते
कुछ दिल के ही टुकडे करते जाते
सच्चे साथी कभी न हैं बिछडते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५३ } {Jan 2013}





एक धुन बजती थी तुम्हारी आँखों में
एक मँजर तैरता था तुम्हारी आँखों में
तारीकियाँ हो चुकी हैं अब आदमकद
ठूँठ सा शजर है अब तुम्हारी आँखों में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल