Saturday, November 1, 2014

{ ८२८ } {Oct 2014}





हुए कहाँ-कहाँ ज़ख्म दिखाने की जरूरत क्या
दिल में बसे हुए दर्द बतलाने की जरूरत क्या
मोहब्बत मोहताज नही है किसी बन्धन की
किसी को एहसास दिलाने की जरूरत क्या।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२७ } {Oct 2014}





न छुपाओ तुम हमसे अपनी राज की बातें
हम तुमसे किसी बात का पर्दा नहीं करते।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२६ } {Oct 2014}






जुदाई में मिलन की तिश्नगी महसूस होती है
हर पल हर क्षण तेरी ही कमी महसूस होती है
आज गर तूझे छूना भी चाहूँ तो छू नहीं सकता
पत्थर की दीवार बीच में खड़ी महसूस होती है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२५ } {Oct 2014}






किसी तरह की छाँव हमें मयस्सर नहीं
छतें टूटी पड़ी हैं, शज़र भी सूखे खड़ॆ हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२४ } {Oct 2014}





काट दी सुहानी ऋतुओं की गर्दनें भागते हुए लम्हों ने
रूमानी ज़िन्दगी की चौकड़ियाँ दहशत में डूबी रात हुईं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२३ } {Oct 2014}





उस संगदिल ने मेरे जज्बातों को कभी समझा ही नहीं
अपनी आदत है दिल की गहराइयों से इश्क का निभाना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२२ } {Oct 2014}






बीता वक्त, गुजरा जमाना अच्छा लगता है
यादों के संग दिल बहलाना अच्छा लगता है
बीती जाती घडियाँ दम तोड़ रही उम्मीदें भी
फ़िर लौटेगा वक्त कहलाना अच्छा लगता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल