उठ रही आँधियाँ मन में छा गया गहरा अँधेरा
यादों के घने बादलों ने हम को हर जगह घेरा
रात सा दिन हुआ, गम की रजनी और काली
लगता है अब न होगा इस निशा का फ़िर सबेरा।।
मेरे भावों-गीतों-एहसासों में अक्सर सन्नाटा गाता है
जितनी दूर नजर जाती है केवल धुआँ नजर आता है
जीवन के रिश्तों में खिंच चुकी कटुता की लम्बी रेखा
एक छोर को सच करने मे छोर दूसरा झुठला जाता है।।
कभी अपने ही परिवेश से अंजान है ज़िन्दगी
भूली-बिसरी हुई यादों का तूफ़ान है ज़िन्दगी
कामनाओं के मधुवन में हिरनी सी उछलती
कभी गम, कभी खुशी से गुंजान है ज़िन्दगी।।
कभी तो महकेगी ही खुशबू मेरे पतझड के उपवन की
रिमझिम खुशियों की फ़ुहार प्यास बुझायेगी मन की
मदमाती मधुऋतु में फ़िर हरियाली ही हरियाली होगी
हृदय तरंगित होगा आग बुझेगी तन-मन-जीवन की।।
ज़िन्दगी का हर सफ़र बन गया यादों का घर
वो न यहाँ न वहाँ, पर हर तरफ़ आती नज़र
आई क्यों जीवन में, क्यों सपनों में छाई थी
सच को जानता हूँ, फ़िर भी बहके मेरी डगर।।
अपने रिश्ते - नातों के बंधन धागे टूट गये
स्नेहिल सँगी - साथी भी सब पीछे छूट गये
जब भी आँखें करती रहतीं अश्कों की बारिश
लगता जैसे दुखती यादों के बादल फ़ूट गये।।