Thursday, February 28, 2013

{ ५०४ } {Feb 2013}





छत्रपति शिवा जी की जयन्ती (19 फ़रवरी) पर शत-शत नमन

रूप-गुण वाणी में वैराट्य
रुद्र का रौद्र रूप अविराम
महासागर के ज्वार समान
वीर शिवा का अमर नाम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५०३ } {Feb 2013}





उठ रही आँधियाँ मन में छा गया गहरा अँधेरा
यादों के घने बादलों ने हम को हर जगह घेरा
रात सा दिन हुआ, गम की रजनी और काली
लगता है अब न होगा इस निशा का फ़िर सबेरा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, February 27, 2013

{ ५०२ } {Feb 2013}





जिस छवि को छूकर संयम का मन डोले
उनसे भी हम ने अपने अधर नहीं खोले
हम ठहरे वीतरागी फ़िर भी न जाने क्यो
चाँद की चाँदनी हमसे हँस-हँस कर बोले।।

गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५०१ } {Feb 2013}





मेरी आहों में अभी असर बाकी है
ज़िन्दगी अभी एक पहर बाकी है
न बुझाओ ये उम्मीदों के चिराग
दूर है मंजिल अभी सहर बाकी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५०० } {Feb 2013}





प्यार की चारो तरफ़ खुमारी छा गयी है
प्यार के रँग की चुनरिया लहरा गयी है
चाँद, तारे, फ़ूल, शबनम मचल रहे है
प्यार की गँध से मीत को महका गयी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९९ } {Feb 2013}





मेरे भावों-गीतों-एहसासों में अक्सर सन्नाटा गाता है
जितनी दूर नजर जाती है केवल धुआँ नजर आता है
जीवन के रिश्तों में खिंच चुकी कटुता की लम्बी रेखा
एक छोर को सच करने मे छोर दूसरा झुठला जाता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९८ } {Feb 2013}





खुद पर देख कर तेरी निगाहें
उमड कर आने लगीं सर्द आहें
जागा नसीब फ़िर मैकदे का
डाल दी साकी के गले में बाहें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९७ } {Feb 2013}





आँसू नहीं देखे तुमने आहें नही जानी
आग को सुनाते तुम, नीर की कहानी
रेत की तपन ही किसी मेघ को पुकारे
प्यासा है मन लिये झील की निशानी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९६ } {Feb 2013}





कितना दुश्वार है हर बात के काबिल होना
मुझसे पूछे कोई तनहाई से महफ़िल होना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९५ } {Feb 2013}





कभी अपने ही परिवेश से अंजान है ज़िन्दगी
भूली-बिसरी हुई यादों का तूफ़ान है ज़िन्दगी
कामनाओं के मधुवन में हिरनी सी उछलती
कभी गम, कभी खुशी से गुंजान है ज़िन्दगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९४ } {Feb 2013}





मदिर चितवन की मोहक सृष्टि
लाजवंत नयनों की मादक दृष्टि
बस गयी है जो मेरे मन-प्राण में
प्रेमल प्रीति सम्मोहक रूप-यष्टि।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, February 25, 2013

{ ४९३ } {Feb 2013}





हो शब्द की गूँज ऐसी तार तेरे ही बजें
लेखनी से अब हमारे गीत तेरे ही सजें
मीत ये सपने हमारे तू कर दे साकार
तुमसे प्यार ही माँगा है प्यार ही सजे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९२ } {Feb 2013}





मैं चला था रागिनी तुमको बनाने
प्यार की तरन्नुम को गुनगुनाने
छू गये लेकिन हर बार गहरे तक
बीच राह बीती सुधियों के जमाने।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९१ } {Feb 2013}





अपने दिल की तमाम बेचैनियों को
तुमसे न कहूँ तो फ़िर किससे कहूँ
दुनिया की नजरों से हो के दूर बहुत
अश्कों की तरह थम-थम कर बहूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, February 22, 2013

{ ४९० } {Feb 2013}





है कभी मिलन की आस लिये
तो लिये विरह का ज्वार कभी
मधुवन में आता ही रहता है
कौमुद कभी मधुमास कभी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८९ } {Feb 2013}





इसांन के हालात कब हैं, किसी के बस में
बिखरे हुए लम्हात कब हैं किसी के बस में
एक ही रात मिल पाई इत्तिफ़ाकन वरना
रब तेरे दिन रात कब हैं किसी के वश में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८८ } {Feb 2013}





रात है बरसात है छाई बदली घर भी दूर है
वस्ले यारी का निभाना भी ऐसे में दस्तूर है
आओ छुप जाओ, पुकारता यार का दामन
वस्ल की हसरत है, दिल को मँजूर भी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८७ } {Feb 2013}





दर्द का लम्बा सिलसिला और हम हैं
सोंच-सोंच कर जेहन में छाले हुए हैं
किसको पहले अपनायें सब हैं जरूरी
इसी लिये हम हर दर्द को टाले हुए हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८६ } {Feb 2013}





बिन पीडा, बिन मस्ती के
बोलो मैं गान सुनाऊँ कैसे
रस - भरे मधुर गीतों को
बोलो प्रियतम गाऊँ कैसे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८५ } {Feb 2013}






तुम्हे खोजने निकला हूँ, फ़िर डर कैसा
कँटक और सुमन पथ में, अंतर कैसा
सँरक्षित है जब तुमसे मेरा अपनापन
जीवन की मधु संग्या है, पतझर कैसा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, February 19, 2013

{ ४८४ } {Feb 2013}





किये वादे सबने मगर कितनों ने निभाये
छोड गये जो फ़िर न कभी लौट कर आये
एकान्त वासी हुआ मौन धारण कर लिया
हमदम दुश्मन हमने सभी हैं आजमाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८३ } {Feb 2013}





कभी तो महकेगी ही खुशबू मेरे पतझड के उपवन की
रिमझिम खुशियों की फ़ुहार प्यास बुझायेगी मन की
मदमाती मधुऋतु में फ़िर हरियाली ही हरियाली होगी
हृदय तरंगित होगा आग बुझेगी तन-मन-जीवन की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८२ } {Feb 2013}





ज़िन्दगी का हर सफ़र बन गया यादों का घर
वो न यहाँ न वहाँ, पर हर तरफ़ आती नज़र
आई क्यों जीवन में, क्यों सपनों में छाई थी
सच को जानता हूँ, फ़िर भी बहके मेरी डगर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



Monday, February 18, 2013

{ ४८१ } {Feb 2013}





मै हुस्न का पुजारी हूँ तुम रूप की देवी
मैं आशिक तुम्हारा तुमसंगदिल फ़रेबी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८० } {Feb 2013}




मुस्कान का लिबास ओढ कर
हुस्न आज फ़िर कत्ल कर गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७९ } {Feb 2013}





सबकी सुनते हो व्यथा तुम
आँख में अपने आँसू लिये
व्यथा अपनी किसको सुनाई
हो लबों को तुम अपने सिये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७८ } {Feb 2013}





जो सहर का रँग, गुलों का निखार था
जो दरिया की मौज चमन का बहार था
उसी ने कर दी वीरान वादियाँ दिल की
जो नजर का सुरूर, दिल का करार था।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७७ } {Feb 2013}






किसी का भी आसरा करके मिला क्या
खुद से खुद को घटा करके मिला क्या
खार सहेजे गुलशन में, गुलबिखराये
ज़िंदगी तुझे झुठला करके मिला क्या।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, February 17, 2013

{ ४७६ } {Feb 2013}





खनकी पायल संकेतों की
मेरे ख्वाबों की कलियों में
कर सोलह सिंगार बसी हो
मेरे गीतों की गलियों में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ ४७५ } {Feb 2013}






आप मुस्कुरायें तो जी बहल जाये
ये अनबन की आग भी ढल जाये
आओ बैठो बात करें मोहब्बत की
गम का वातावरण भी बदल जाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७४ } {Feb 2013}






राग की इस रागिनी ने
साज छेडा जब तुम्हारा
झँकृत हुआ सारा बदन
मन है हरपल तुम्हारा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७३ } {Feb 2013}





आज अपना साया ही जब अजनबी हुआ
वो इश्क भी बीते कल की कहानियाँ हुईं
मोहब्बत में हमको और मिलता भी क्या
हुस्न की इश्क पर कब मेहरबानियाँ हुईं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७२ } {Feb 2013}





अपने रिश्ते - नातों के बंधन धागे टूट गये
स्नेहिल सँगी - साथी भी सब पीछे छूट गये
जब भी आँखें करती रहतीं अश्कों की बारिश
लगता जैसे दुखती यादों के बादल फ़ूट गये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७१ } {Feb 2013}





खुद को पहचाना है हमने
हम नही हैं वक्त के मारे
जीवन हमसे ही जीता है
हम जीवन के नही सहारे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल