Saturday, January 21, 2012

{ १४४ } {Jan 2012}





खुश हो तुम महफ़िल में रहने लग गई हो
अपने हुनर से कुछ ऐब करने लग गई हो
अब कोई नही कह सकता तुमको कातिल
जब मुस्कुराकर कत्ल करने लग गई हो ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १४३ } {Jan 2012}






अँदाजे-बयाँ आपका बदला तो यूँ लगा
हम बात कर रहे थे अभी तक नकाब से
किसी दिल में किस तरह कोई जगह करे
यह राज अब पूछना है किसी कामयाब से ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १४२ } {Jan 2012}






राह है काँटों की पाँव बँधन में
ज़िन्दगी है अजीब उलझन में
मेरी ज़िन्दगी में तुम हो जैसे
चाँदनी चहके बबूल के वन में ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १४१ } {Jan 2012}





मुस्कुराते रहे हैं हम रोते हुए
तेरी नजर के सामने होते हुए
आज फ़िर से रात पकडी गई
तेरी उलझी ज़ुल्फ़ों में सोते हुए ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, January 13, 2012

{ १४० } {Jan 2012}







हुई थी कल उनसे मुद्दतों में मुलाकात
खामोश अदाओं से ललचाते जज्बात
उनके नग्मों मे ही सो गई रात चाँदनी
भुलाए न भूले वो खुश्बू में डूबे लम्हात ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३९ } {Jan 2012}






मोहब्बत अब राज रही नही, दिन बीत गये
ऐ यादे-शबाब ! तेरे वो दिन अब बीत गये
मगर उसके हुस्न के तेवर कहते हैं अब भी
हार जाये जो इश्क मे, समझो वो जीत गये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३८ } {Jan 2012}






जमाने में प्रेम के नाम पर
वासना का अजीब धन्धा है
कौन सुने-समझे किसी की
रूप बहरा है प्यार अन्धा है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३७ } {Jan 2012}






चाँदनी की सब खूबियाँ हैं चाँद से
आदमी की सब खूबियाँ ईमान से
यही तिलिस्म है ज़िन्दगी का यारों
ईमान साथ है जियो जीस्त शान से ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३६ } {Jan 2012}







ये अब्रे-बाराँ मचलते हैं दरिया से मिलने को
जैसे दरिया मचले उस सागर से मिलने को
ये इश्क भी ऐसे ही करता आशिक को दीवाना
क्षण भर रह न पाते मचले फ़िरते मिलने को ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३५ } {Jan 2012}






तेरी बातें जब-जब भी मुझे याद आती हैं
दिलो-दिमाग से और बातें उतर जाती है
तुझे जिस जगह कभी देखा करता था मै
अब नजर वहाँ पहुँच कर ठहर जाती है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३४ } {Jan 2012}





पूनम वाली रात चाँदनी बनकर आओ
आ कर मन का दर्द सघन हर जाओ
सावनी घनेरे मेघों की रिमझिम बन
अन्दर-बाहर तपती जलन हर जाओ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, January 5, 2012

{ १३३ } {Jan 2012}






रूप के ही वास्ते हम प्यार को गवाँ बैठे
क्या कहूँ बेवजह बदनामियाँ कमा बैठे
मेरे आवार उसूलों की ये सिफ़त देखो
बेवफ़ाओं से ज़िन्दगी मे कर वफ़ा बैठे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, January 4, 2012

{ १३२ } {Jan 2012}





ये शब्द नही, गीत नही, संकेतों की है रानाई
लग रहा जैसे लब कहने जा रहे हैं कोई रूबाई
अब हो चला है दिल मे पूर्ण विश्वास मुझको
खूबसूरत गीत की होगी गजल से ही सगाई ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३१ } {Jan 2012}






अब कहाँ वो इन्तजार की वो रातें
न अब वो सिलसिले हैं ख्वाबों के
जिनकी खुशबू बसी मेरे गीतों में
अब उड चुके हैं रंग उन गुलाबों के ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १३० ) {Jan 2012}






इन इशारों में क्या कह रही हो
कैसे इशारो मे तुम्हे समझाऊँ
आ कर अधर तक रुक गई है
कैसे हृदय की बात मैं बतलाऊँ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १२९ } {Jan 2012}





इश्क और हुस्न अगर जुदा होते
एक ही आलम में दो खुदा होते
हम पास रह कर भी दूर ही होते
दुनिया में हम दोनो गमज़दा होते ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १२८ } {Jan 2012}





पुष्प मालाओं से
गृह द्वार सजाइये
धूप-गंध सुलगाइये
और दीपक जलाइये
हर्षोल्लास से आज
नव वर्ष मनाइये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

(०१-०१-२०१२)

{ १२७ } {Jan 2012}





नित जीवन की बेला में
सपनो के सेज सजाती हूँ
तुझको पाने की आशा में
निज मन को बहलाती हूँ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १२६ } {Jan 2012}






मेरे कितने करीब आ गई साकी
फ़िर भी तो है प्यास अभी बाकी
प्यास किस-किस की हरे आखिर
भीड है भँवरों की और फ़ूल एकाकी ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १२५ } {Jan 2012}






जीवन का मधुसार न लो
मुझसे मेरा प्यार न लो
वीणा से मन बहलाती हूँ
मुझसे मेरा संसार न लो ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १२४ } {Jan 2012}





काश कि ऐसा भी कभी हो सके
इन दूरियों मे कमी सी हो सके
हो सके मिलन हँसे हर किरन
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी सी हो सके ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ १२३ } {Jan 2012}






उपवन का सुन्दर सार लिये
नवयौवन का श्रॄंगार किये
मादक प्याली सरसार पिये

आई बसन्त सी
छाई बसन्त सी
भाई बसन्त सी

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १२२ } {Jan 2012}






रूप तो प्यार के बल जिन्दा है
बिन इसके जीस्त शर्मिन्दा है
हर कोई वैसे तो रहता घर मे
दिल का बिरला ही बाशिन्दा है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल