Thursday, April 19, 2012

{ २४६ } {April 2012}





बिफ़रे जब-जब रूप का समन्दर
बोलो कैसे रह पाऊँ हद के अन्दर
मै ठहरा हुस्न-ओ-नूर का आशिक
मत समझो मुझको मस्त कलन्दर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २४५ } {April 2012}





मुस्कुराकर जो तुम मिले होते
प्रीति दिल में उतर गई होती
कुछ देर के लिये ही सही, पर
मेरी दुनिया भी सँवर गई होती।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २४४ } {April 2012}





अगिन में क्यो झुलसती जा रही तुम
चाँदनी को इसतरह क्यों तरसाती हो
तनिक प्यार से प्यार का जवाब दे दो
बेवजह मुझपर नफ़रत आजमाती हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २४३ } {April 2012}





जख्मों पर शब्दों का मरहम
टूटे तारों से बजता सरगम
कैसे सुने प्यार की रुनझुन
रूठा हो जब प्यारा हमदम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २४२ } {April 2012}





अभी हसरतों की उडान है
दूर तक फ़ैला आसमान है
सिर्फ़ मौत से नही दोस्ती
ज़िन्दगी अभी जवान है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, April 13, 2012

{ २४१ } {April 2012}





कठिन है राह प्यार की, पर
प्यार के ख्वाब सजाये रखिये
मुश्किलें इश्क की हमदम हैं
हौसलाये इश्क बनाये रखिये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २४० } {April 2012}





अँधेरे के मारे हुए दिल
रात से भी हारे हुए दिल
आँसू के सहारे हुए दिल
बहुत ही बेचारे हुए दिल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३९ } {April 2012}





जलियाँवाला बाग काँड (13 अप्रैल 1919) के शहीदों को शत-शत नमन


शख्सियत है कौन जो झुकी नही
हो गये जगवन्दनीय स्वयमेव में
उन शहीदों पे जन-जन को गर्व है
प्राण भी दे दिये देश-हित ध्येय में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

( २३८ } {April 2012}





आपको कौन सा विशेषण दूँ
और किस नाम से पुकारूँ मैं
ओह ! एक दिये से सूरज की
आरती किस तरह उतारूँ मैं ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३७ } {April 2012}





आस भी उर में कसमसा रही है
प्यार की लौ भी थरथरा रही है
बीते रात सुध भी सताती जाये
आँख रह-रह कर डबडबा रही है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३६ } {April 2012}





दिल तो काँच की चूडी से भी नाजुक ठहरा
किस तरह इतनी बडी चोट को सह जाये
जो कभी अर्शे-मोहब्बत से न नीचे उतरा
कहीं मौत आने से पहले ही न ढह जाये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३५ } {April 2012}





किसी दिन धूल में ही मिल जायेगा
रूप हिरनी का हो या कि नागिन का
कोई नही आया अजर-अमर हो कर
फ़ूल भी मेहमान है एक-दो दिन का।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३४ } {April 2012}





हर फ़ूल डालियों पर फ़ूला नही समाये
पतझड भी गजल बहारों की गुनगुनाये
ये खिले गुल चमन से खुश्बू हैं लुटा रहे
काँटों की चुभन अपने ही दिल में छुपाये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, April 3, 2012

{ २३३ } {April 2012}





हर साये के साथ ही न ढल
अपनी धूप में भी कुछ जल
गम की कोई आवाज ही नही
जितना जल सकता है जल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३२ } {April 2012}





उल्फ़त का चमन उजड गया है
रंग-ए-गुल फ़ीका पड गया है
चमन में आई एक आँधी ऐसी
हर फ़ूल डाल से बिछड गया है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३१ } {April 2012}





सुनसान रात बेनूर है, सितारे भी हुए मद्धिम
कहाँ गये वो लोग जो राह में पलकें थे बिछाते
अब तो वो दिन भी नही रहे, कब के गुजर गये
जब मेरे नाम के साथ ही अपना नाम थे बताते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३० } {April 2012}





कानो ने सुनी अभी आवाज वही
आँखों ने भी देखे हैं अन्दाज वही
दिल से भी उठ रही है यही सदा
है मौजूद यहीं अंजुमने नाज वही।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २२९ } {April 2012}





बदल दिया रंग यार ने तो प्यार की बातें कहाँ
वो मुलाकातें वो चाँद और वो चाँदनी राते कहाँ
हिज्र में हुई यारी मये-सागर से पर सुकूँ नही
अब वस्ल-ओ-यार की लम्बी मुलाकातें कहाँ।।

-- गोपाल कृष्न शुक्ल

{ २२८ } {April 2012}






अब तो खत्म ही होती जा रही है ज़िन्दगी
पर मौत को भी तरसा रही है ज़िन्दगी
ये मौत तो ज़िन्दगी का ही दूसरा नाम है
फ़िर क्यों ज़िन्दगी को भा रही है ज़िन्दगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २२७ } {April 2012}





फ़ागुनी बयार भोर बन गई सहसा
बसी थी जो मुझमे साँझ सावन की
तुमने कुछ इस तरह छुआ मुझको
ऋतु ही बदल गई मेरे मन-दर्पन की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल