Tuesday, April 30, 2013

{ ५७१ } {April 2013}





गुनाहों को अपने घर प्रेम से बुलाती है मदिरा
फ़िर उनको अपना आशिक बनाती है मदिरा
मदिरा के इश्क में डूब, झूम के चलता गुनाह
तब गुनाहों की प्रियतमा कहलाती है मदिरा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५७० } {April 2013}






अब नहीं होठों पर.. मुस्कानों का बसेरा है
रूठी ज़ुल्फ़ों की रातें, न आँखों में सबेरा है
पडने लगी है फ़ीकी.. आँखों की चमक भी
चँचल सी चितवन पर.. आ बसा अँधेरा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, April 29, 2013

{ ५६९ } {April 2013}





जग सोंच रहा कि वो मेरा तलबगार है
जानता सिर्फ़ मैं कि वो मेरा ही प्यार है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५६८ } {April 2013}





पवन जब-जब मन के दरवाजे पर दस्तक देता
हो जाता विरह का आभास छलकती आँखों को।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, April 26, 2013

{ ५६७ } {April 2013}







कोई खुशनज़र मेरे आँसुओं को देख ही ले अगर
मेरे चेहरे पर छाई हुई उदासियाँ काफ़ूर हो जायें।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५६६ } {April 2013}






मेरी वफ़ा की यही सजा मिली है मुझे
वो मजबूरी बताकर किनारा कर गये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, April 25, 2013

{ ५६५ } {April 2013}





उपवन का आँचल जगह-जगह से नुचा-नुचा
हर क्यारी को ढाँपे बेमौसम फ़ागुनी बहारे हैं
लज्जा ने स्वयं ढाँप लिया अपने नयनों को
लग गयी भँवरों की लम्बी-लम्बी कतारें हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५६४ } {April 2013}






आँखों की नींद ले गया, दिल का चैनों-सुकूँ ले गया
आह, वो जालिम मुझसे न जाने क्या-क्या ले गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५६३ } {April 2013}





ए अनाम लडकी तुम नहीं
पूरी व्यवस्था नग्न हो गई
समाज नष्ट-भ्रष्ट हो गया
रुग्ण मानवता भग्न हो गई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५६२ } {April 2013}





आज मानवता घिर गई है कुत्सित अनुतापों से
मधुबन खुद पीडित है, माली के क्रिया कलापों से।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, April 20, 2013

{ ५६१ } {April 2013}





चमन में खिली कलियाँ मुस्कुराती तो हैं
पर कौन मेरा हबीबी है, कौन जानता है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५६० } {April 2013}





दिल में मस्तानी खुशियाँ छाती जा रही हैं
आँखें भी नींद से बोझिल होती जा रही हैं
आपके लहराते गेसुओं की मस्त खुश्बुयें
कितने दिलकश सुरों में गाती जा रही हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, April 19, 2013

{ ५५९ } {April 2013}





खिडकी की ओट से जब वो मुस्कुराया
दिल मनचला हो गया लब तकते-तकते। ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५८ } {April 2013}





दिया है आपने जो गहरा ज़ख्म दिल को
ये सौगात है आपकी सँभाल कर रखूँगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, April 18, 2013

{ ५५७ } {April 2013}





पता नहीं क्यों तुमसे इतना.... इस मन को अनुराग है
भ्रमर जानता फ़ूल-फ़ूल को... किसमें कितना पराग है
अलसाए से कभी हो तुम... कभी सकुचाए से लगते हो
चंचल चितवन और अन्तर्हास जगाता हृदय में आग है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५६ } {April 2013}





रँग-बिरँगे फ़ूल गुलशन में थे हजारों
पर तुम सा हँसीं कातिल कोई न था।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५५ } {April 2013}





यादें द्रुत-गति से आती-जाती हैं
यादें दिल का उल्लास बढाती हैं
यादें कभी तिल-तिल जलाती हैं
निर्विकार रहता जो जीवन में
यादें उसकी समरस हो जाती हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५४ } {April 2013}





क्यों बहाते हो तुम अश्कों का सागर
हम मगरूर हो गये पाकर गुलिस्ताँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५३ } {April 2013}





आहिस्ता से जब कमलनी अंगडाती है
कविता में रस-धार बहती बलखाती है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५२ } {April 2013}





बँध गये हैं संबन्ध मेरे प्रीति के पाँव से
हो न सकूँगा दूर अब मौलश्री की छाँव से।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५१ } {April 2013}





आओ कल्पनाओं को नया आकाश दें
चमन के वास्ते रच नया मधुमास दें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५० } {April 2013}





आए हैं यूँ बहुत से झँझावात पर हुई न कम चाहत
बढती रही निशदिन हरपल दर्द में जीने की आदत
बन गया दर्द का सागर पर नदी की तरह बहा नहीं
अब दर्द भरे घर में भी कोई दर्द देता नहीं है राहत।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४९ } {April 2013}





रुखसार पर ज़ुल्फ़ों को आवारा छोड दो
काली घटाओं का रुख मेरी ओर मोड दो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४८ } {April 2013}





हुआ खुशियों का गमों से याराना
ज़िन्दगी बन गयी मौत की सहेली
बता, ओ दुनिया को बनाने वाले
क्यों ज़िन्दगी बनी उलझी पहेली।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, April 16, 2013

{ ५४७ } {April 2013}





भूले से भी लाओ नहीम होठों पर उसका नाम
याद करो दिल ही दिल में, करो न उसे बदनाम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४६ } {April 2013}





ये दीपक. जो अँधेरों के अँक में पला है
मेरे साथ रात भर हँस-हँस कर चला है
सह सकता है. वो ही जिसमें भरा स्नेह
रोशनी दे सकता वो ही जो खुद जला है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४५ } {April 2013}





नयनों से बाण चलाती हो
नयना खूब.. मटकाती हो
अपने दिल के लफ़्ज़ों को
नयनों से... कह जाती हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४४ } {April 2013}





दो दिलों का मिलन क्या है तृप्ति क्या है
मैं निरंकुश किसी का प्यार जान न सका
नीलगगन में जडा हुआ मैं एक सितारा हूँ
चाँदनी का सरल तरल दुलार जान न सका।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४३ } {April 2013}





हसरतों की उडान ज़िन्दा रख
दिल में अरमान ज़िन्दा रख
दर्द न सजाओ अपने दिल में
इश्क की ज़बान ज़िन्दा रख।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४२ } {April 2013}






कहना तो चाहा था बहुत कुछ पर कह नहीं सकता
बात यही सच है कि मैं तेरे बिन रह नहीं सकता।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४१ } {April 2013}





यह जगत है संताप पर संताप. का घर
देख सकता वह सुखी... किसको भू पर
हमारी इन अश्रु-धाराओं पर.. हो रहा है
नव-निर्माण मन-मुदित-प्रासाद सुन्दर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४० } {April 2013}





न कोई सियाह न कोई साफ़ है सबकी अपनी-अपनी कसौटी है
कोई कहता हमको खरा, किसी के लिये नियत हमारी खोटी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३९ } {April 2013}





बन्द हुआ खेल खिलौनों का सिलसिला
बालपन कब बीता कुछ पता ही न चला
चपल बालमन, उम्र की नीडों में सो गया
छूटे संगी-साथी, बिखर गया काफ़िला।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३८ } {April 2013}





कुछ पाने के लिये बहुत कुछ खोता हूँ
गमों में डूबी खुशियों के लिये रोता हूँ
प्यार ही सच्चा मोती है जिसे पाने को
अपनी ज़िन्दगी गहरे दर्द में डुबोता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३७ } {April 2013}





जोडती गगन को जो धरती से
चमाचम लकीर ये बिजली की
पायल की तरह ही बजा करती
झीनी-झीनी फ़ुहार ये बदली की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३६ } {April 2013}





पाकर इश्क को मुतमैन हैं हम
इश्क में हाथ ऐसा खजाना लगा
इश्क ही रास्ता, इश्क ही मंजिल
इश्क दिल को ऐसा सुहाना लगा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, April 14, 2013

{ ५३५ } {April 2013}





नज़र नवाज़ नहीं तो नजारे भी उदास हैं
चाँदनी उदास लगती सितारे भी उदास हैं
न पूछ मुझसे कि मुझपे क्या गुजरती है
दरिया उदास लगती किनारे भी उदास है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३४ } {April 2013}





खाली-खाली जेब कहे कैसे होली का स्वागत हो
घर में भूँजी भाँग नहीं, क्या पानी की दावत हो
दास्ताँ अपनी सुनाते आँखों के आँसू सूख गये
गुम होती मस्ती जब कतार में खडी आफ़त हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३३ } {April 2013}





आँख की कोर से जब तुमने मेरी ओर निहारा
कर दिया उन्मत्त मुझको वारुणी ऐसी पिलाई
अब अपने दृष्टि चषकों में भरो ऐसा महाविष
जब पियूँ उसको पडो बस तुम ही तुम दिखाई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, April 13, 2013

{ ५३२ ) {April 2013}





तनहा डगर देख-देख कर
बावरी आँख भर गयी है
प्यार बे-आसरा हो गया
आस बेमौत मर गयी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३१ } {April 2013}





जो मिले कर्म-भोग सदैव भोगते रहे
भोग-दण्ड हमने कौन-कौन नहीं सहे
कभी निराश किया हमें भाग्य-रेख नें
और कभी दिये हमें अनन्त कह-कहे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३० } {April 2013}





फ़ागुन की सुबह सा कभी झिलमिला गया
सावन की शाम सा... कभी मैं धुँधला गया
आइना-ए-तकदीर पर. जब भी नजर पडी
तनहाई औ’ रुसवाइयों को.. बहुत भा गया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५२९ } {April 2013}





कर दिया तेरी नजरों ने आवारा मिजाज
दिल की धडकने मधुर गीत बन गयीं हैं
छू के आती है जो तुम्हारे नर्म जिस्म को
वो खुशनुमा हवायें अब मीत बन गयी हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५२८ } {April 2013}





तेरे लबों पे खिली तबस्सुम सहर सी लगे
जहन में तैरते खयाल.. हमसफ़र सी लगे
तेरी नीची नज़र, झिझक और अब्रू पे बल
धडके दिल मचलती जाँ पे कहर सी लगे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५२७ } {April 2013}





इश्क है जहर से लबरेज़ पैमाने का नाम
इश्क है फ़रेबे-मुस्तकिल खाने का नाम
दिलदारी के ये रँग कितने दिलचस्प हैं
लेते हैं मेरे सामने ही वो बेगाने का नाम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५२६ } {April 2013}





पत्नी की कल्पना को पति ने यदि नहीं किया साकार
मिलेंगें फ़ुकनी चिमटा बेलना, पति पडा होगा लाचार।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, April 12, 2013

{ ५२५ } {April 2013}





हार हो या कि जीत हो, परवाह क्या
क्यों न तम के शिविर में किरणे धरें
हम लहलहाते पुष्प-वन की गन्ध हैं
जीर्ण पत्रों की तरह फ़िर क्यों झरे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५२४ } {April 2013}






भटके पहचानी राहों में.. जाने किस कारण
आशाओं के पथ पर..... टूट गये अपने प्रण
सुधि और स्वयं का.... बिम्ब हुआ विस्मृत
दर्पण पे चित्रित हुआ नयनों का आकर्षण।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५२३ } {April 2013}





आह ! तुम्हारी मस्ताना कातिल अदायें
हुस्न की लहलहाती हुई रंगीन फ़िज़ायें
छू-छू के आती हैं जो तुम्हारे जिस्म को
दिल को बेकाबू कर जाती है वो हवायें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, April 8, 2013

{ ५२२ } {April 2013}





रात महुए के फ़ूल छलके तो
डगमगा गई नशे में पुरवाई
पी गई इतनी कि भोर तक
चाँदनी फ़िर न होश में आयी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल