Monday, September 30, 2013

{ ६९१ } {Sept 2013}





हमने जब-जब करने को प्यार बढ़ाई बाहें
तब-तब जालिम दुनिया ने रोकी मेरी राहें
कितने ही अपमान सहे वरदान समझकर
पर दुनिया हर पग पर खड़ी तरेर निगाहें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, September 29, 2013

{ ६९० } {Sept 2013}





मोहिनी ने आशनाई के जाल में ऐसा उलझा दिया
कि कभी आस की धूप तो कभी मायूसी की धुँध है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८९ } {Sept 2013}




इन हवाओं. को हुआ. क्या नहीं. पत्ते खड़कते हैं
घरों के बीच बन रहे खंड़हर नहीं सीने धड़कते हैं
धुँयें के बीच. रहते. हम पर तपन. से दूरियाँ चाहें
चमकती तड़ित चम-चम नहीं बादल कड़कते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८८ } {Sept 2013}





इश्क की राहों में बचे सिर्फ़ इम्तिहाँ हैं
फ़ासले इस लिये दिल के दरमियाँ हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८७ } {Sept 2013}





दृग ने पलक मींच "उससे" कहा इधर लखो
"उसने" गाल में पँजा छाप कहा अब बको।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८६ } {Sept 2013}





बोझिल पल जुदाई के, फ़ुरकत की स्याह रातें
मोहब्बत में मुकद्दर ने हमें दी हैं यही सौगातें
तेरे आगोश मे कटी ज़िन्दगी यादों में बसी है
ऊठ गयी चाँदनी रातें, छूटी वो हसीन मुलाकातें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८५ } {Sept 2013}





दो हृदयों का मिलन देखकर सारा जग जलता है
पर अपने मन पर ही कब किसका बस चलता है
जिस पे रीझे उस पे अपना जीवन अर्पित करना
यह मानव की एक चिरंतन मनभावन दुर्बलता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८४ } {Sept 2013}




एक-एक पल अनमोल रतन हो जाये
ज़िन्दगी क्या है गर समझ पाओ तो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८३ } {Sept 2013}





हुआ उसकी छवि से अभिसार
खो बैठा हूँ निज पर अधिकार
अभीभूत हो गयीं सारी ॠतुयें
बहने लगी मस्त मादक बयार।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८२ } {Sept 2013}





वस्ल में खामोश रहना इश्क की तौहीन है
लबे खामोश से कुछ तो गुनगुनाना चाहिये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६८१ } {Sept 2013}





माँ बिना सब कुछ है बेकार
माँ ही है सब सुख का सार
बिना मोल का प्यार बाँटती
माँ बिन सूना सारा सँसार।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल