इन हवाओं. को हुआ. क्या नहीं. पत्ते खड़कते हैं
घरों के बीच बन रहे खंड़हर नहीं सीने धड़कते हैं
धुँयें के बीच. रहते. हम पर तपन. से दूरियाँ चाहें
चमकती तड़ित चम-चम नहीं बादल कड़कते हैं।।
बोझिल पल जुदाई के, फ़ुरकत की स्याह रातें
मोहब्बत में मुकद्दर ने हमें दी हैं यही सौगातें
तेरे आगोश मे कटी ज़िन्दगी यादों में बसी है
ऊठ गयी चाँदनी रातें, छूटी वो हसीन मुलाकातें।।
दो हृदयों का मिलन देखकर सारा जग जलता है
पर अपने मन पर ही कब किसका बस चलता है
जिस पे रीझे उस पे अपना जीवन अर्पित करना
यह मानव की एक चिरंतन मनभावन दुर्बलता है।।