Monday, March 26, 2012

{ २२६ } {March 2012}





आज फ़िर एक फ़ूल अधखिला टूटा
प्यार को भी तो आसरा मिला झूठा
गम की जागीर हो गई ज़िन्दगी मेरी
नही मुश्किलों से है सिलसिला छूटा ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २२५ } {March 2012}






जो बीत रहा वह लौट कर न आयेगा
जितना खोजेंगे उतना भरमायेगा
बस्ती सपनो की सजती जायेगी
यह जग उसे इतिहास बतायेगा ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २२४ } {March 2012}





सूरज नजर आते ही क्यो मेरी रात हो गई
बाजी शुरू हुई ही थी कि मेरी मात हो गई
समझी न जीस्त भी यूँ मेरे मिट जाने को
मौत भी पूछती फ़िरे ये क्या बात हो गई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २२३ } {March 2012}





प्यार के फ़ूल फ़ेंक कर तुमने
जेब मे बैर की अगिन भर ली
आदमी के चलन से घबरा कर
आदमियत ने खुदकशी कर ली ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २२२ } {March 2012}





सुवासित पुष्प, वन-उपवन में छाई हरियाली
डाल-डाल कूकती पंचम स्वर में कोयल काली
मंजरियों से अटी पडी आम्र-वन की डाली-डाली
वल्लरियों से इठला रहा आज उपवन का माली ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ २२१ } {March 2012}





रूप गुण वाणी में वैराट्य
रुद्र के उग्र रूप अविराम
महासागर के ज्वार समान
वीर शहीदों के अमर नाम ।।

अपने लिये क्या मातृभूमि हित दे प्राण को
झुकने नही दिया कभी देश स्वाभिमान को
रख ली शान देश की, मर कर भी अमर हुए
शहीदों ने दिखाया, हिन्द का जौहर जहान को ।।


-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



{ २२० } {March 2012}





देख कर शराब दिल बहलता है
जाम का दौर पर दौर चलता है
लडखडाते हैं रिन्द जितना ही
मयकदा उतना ही सँभलता है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, March 19, 2012

{ २१९ } {March 2012}





न सर झुकाओ, अपने सर को उठाओ
मिली तुम्हे जवानी, जवानी गुनगुनाओ
अब अँधेरों से निकलो, उजालों में आओ
बस तनिक दूर मंजिल, कदम तो बढाओ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २१८ } {March 2012}





अँधेरे में चिराग झिलमिलाने लगते है
आसमाँ में सितारे जगमगाने लगते हैं
जब चूम लेता हूँ इन नशीली आँखों को
मैकदे के जामो-मीना थरथराने लगते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २१७ }{March 2012}






जुदाई-दर्द ही क्या ज़िन्दगी का नाम है
मोहब्बत करना भी हिम्मत का काम है
पर एक भी पल चैन से कटता तो कहते
इश्क से दिल को मिलता बडा आराम है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २१६ } {March 2012}



वो रंग बस अभिलाष, याद बन कर रह गये
न चुन सके हम शबनम के रूप अनुपम को
आसीन आँख पर, क्या कहे इस पुरनम को
अवाक-अचंभित वाद-संवाद बन कर रह गये
वो रंग बस अभिलाष, याद बन कर रह गये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २१५ ) {March 2012}






गम में सारी डूब गईं हैं बस्तियाँ
भूख से तडपे निकले सिसकियाँ
स्याह रात औ’ कंकरीली रहगुजर
अब माँझी की पतवार हैं आँधियाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, March 13, 2012

{ २१४ } {March 2012}






गीत से प्रेम और साज से दूरी
आप की बात हम नही समझे
आप ने प्यार से गजल सुन ली
और शायर का गम नही समझे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २१३ } {March 2012}





लिखना है यदि नई कहानी जो
तो मसि-कागद-कलम उठाओ
उमंग-रास-रंग्संवेदना पूरित
पृष्ठ पर पृष्ठ नए रच जाओ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २१२ } {March 2012}





कालिदास का श्लोक हो जैसे
साँसों में नायिका कला सी तुम
मनुज हृदय में प्रीति का बिरवा
सींच रही हो शकुंतला सी तुम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २११ } {March 2012}





रूप के दिन हैं रंग के दिन हैं
और मन में उमंग के दिन हैं
मेरे जीवन में तुम आए जबसे
जादुई जल - तरंग के दिन हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, March 9, 2012

{ २१० } {March 2012}






प्यास में एक घूँट जल की तरह
भोर के ताल में कमल की तरह
हमारे जीवन में करीब आये तुम
एक ताजी रंगीन गज़ल की तरह ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, March 8, 2012

{ २०९ } {March 2012}





शिक्षा पंडितों ने दी, बताया हितैषियों ने दोष
निश्चय किया ये, आज से कभी न पियूँगा मैं
जानता हूँ मैं यह भी कि पीना यदि छोड दिया
उसके बिना संसार मे क्षण-भर न जियूँगा मैं ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, March 7, 2012

{ २०८ } {March 2012}





आ जा ओ रमणी
आ जा ओ कामिनी
आने में विलम्ब कैसा
कोष मकरन्द जैसा
पात्र मे छलकता
अगम पारावार है ।

ओ मेरे दिलदार
ओ नैन कटार
होली का रंग है
आज कर उपकार
आज विजया संग
रास रंग विहार है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २०७ } {March 2012}





धरती के आँचल में भरा है रंग हरा-हरा
गगन मे सितारे और नीला ध्वज फ़हरा
खिलते होली पर्व में चहुँ ओर रंग ही रंग
दिलों के मिलन मे खिलता रंग सुनहरा ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २०६ } {March 2012}





लूट-खसोट का हुआ नतीजा यह
कल जो राजा थे आज सन्यासी हैं
कल खुशियाँ थीं जहाँ स्वयँवर की
वहाँ आज वनवास की उदासी है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २०५ } {March 2012}





किस मधुशाला से पीकर आई हो तुम मदिरा
क्यों न गीत बने तेरे मादक-नयन भरे मदिरा
मस्ती में झूम-झूम जाता देखो मेरा तन-मन
उफ़नाता यौवन तेरा छलके जैसे गागर-मदिरा ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २०४ ) {March 2012}





हसरते-दिल को दिल से लगाये रखिये
हर घडी को तमन्नाओं में डुबाये रखिये
न छोडिये साथ इनका आखिरी दम तक
ख्वाहिशे-गुल को दामन में सजाये रखिये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, March 4, 2012

{ २०३ } {March 2012}





तुमसे प्यार की बातें अच्छी लगने लगी धीरे-धीरे
बहारों से मुलाकाते अच्छी लगने लगीं धीरे-धीरे
तेरे हुस्न के दिलकश नजारे आसमाँ पर छाये हैं
चाँद और चाँदनी राते अच्छी लगने लगी धीरे-धीरे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २०२ } {March 2012}





साथ तुम हो तो रंग हर शय का
आज मेरे लिये बहुत सुनहरा है
दिन जो अक्सर पहाड से गुजरें
आज कुछ पलों मे ही गुजरा है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २०१ } {March 2012}





तुमसे ही खुश्बू को है आसरा
तुमसे ही तो रस है कामराँ
तेरे चेहरे का नूर ही कर जाता
हम से दीवानो का दिल बावरा ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २०० } {March 2012}





पूरा गुलशन ही खौफ़नाक
खारों का जंगल लगता है,
बेचारी कोयल क्या गाये
उल्लू का जब डंका बजता है।
गीतों का कर दिया कत्ल
बेरहम गर्दिशो - उलझन ने,
गुम है दिल से मस्ती बस
आहों का स्वागत करता है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, March 2, 2012

{ १९९ } {March 2012}






ये सच और साफ़ बात है
वही दिवस है वही रात है
पर न रहे वो प्रेम-रास-रंग
बस घात और प्रतिघात है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९८ } {March 2012}





बुजदिली से मुझे अदावत है
जुल्म सहना बुरी आदत है
ऐसे जीने से मौत है बेहतर
ज़िन्दगी चाहती बगावत है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९७ } {March 2012}





न हो मायूस, न करो गम की बातें
वो खुशियाँ आपके घर जरूर लायेंगे
कुछ देर रखिये दिल मे इत्मिनानी
न ठुकराइये उनको वो टूट जायेंगे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९६ } {March 2012}





आप जरा मेरे और करीब आये तो
मेरे पहली में आकर मुस्कुरायें तो
न आजमाया करें मेरे दिल को यूँ
दिल शीशे का है कहीं टूट जाये तो ??

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल