Friday, January 31, 2014

{ ७३२ } {Jan 2014}





मैं आकुल हृदय, हूँ वेदना का अनन्य पुजारी
आँसुओं की ही आरती हमने निश-दिन उतारी
व्यथित मन को आज बुझे से शब्द भा रहे हैं
काँपते शब्द-मँदिर की मूरत हमने यूँ सँवारी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७३१ } {Jan 2014}





तुमको दिलो-जाँ से चाहने वाले जमाने में बहुत हैं
एक हम ही करीबी न हुए तो क्या फ़र्क पड़ता है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७३० } {Jan 2014}





तुमने तो उन ख्वाबों को ही माँग लिया
जो तुम्हारी यादों में रहकर सँजोये हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२९ } {Jan 2014}





मुझे इंतज़ार है आज भी उस सरसर का
जो उसके चेहरे का नकाब उलट जायेगी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२८ } {Jan 2014}





हम अकेले हैं फ़िर भी हम अकेले हैं कहाँ
मेरी तन्हाइयों में गूँजती हैं कल की सदायें।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२७ } {Jan 2014}





कर लो मुझपर सितम अब जितना चाहो तुम
हमको अब गम में भी मुस्कुराना आ गया है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२६ } {Jan 2014}





सिर्फ़ चेहरा ही नहीं शख्सियत भी पहचानो जनाब
आइना जो दिखलाता है वो हरबार सच्चा नहीं होता।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२५ } {Jan 2014}





सागर सी हो गई नदी बढ़कर
मँझधार में समाये किनारे हैं
कश्ती भँवर से लड़ रही है पर
सहारे सब हो चुके बे सहारे हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२४ } {Jan 2014}





टूटे स्वप्न, बिखरी नींदें रह गईं
गुजरी रातें क्या-क्या न सह गईं
तुमसे बिछड़ कर मुझे ऐसा लगा
जैसे साँसें मुझे अलविदा कह गईं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२३ } {Jan 2014}





शाम ढ़ल चुकी है शाम को सँवारा जाये
गम-ए-जीस्त को जाम में उतारा जाये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२२ } {Jan 2014}





मेरे तड़पने का तमाशा देखने को
दिल को दिये उसने ज़ख्म कई-कई।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२१ } {Jan 2014}





कामनाओं का मचा हुआ उत्पात आँखों में
जल रही एक आग सी दिन रात आँखों में
बोझल हो चुके जुदाई के हर पल, हर दिन
राह तकते गुजर जाती हर रात आँखों में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७२० } {Jan 2014}





अश्कों के खजाने यूँ ही नहीं हासिल होते
पीना पड़ता है जहरे-जुल्म काफ़ी मुद्दत तक।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७१९ } {Jan 2014}





इन्द्रधनुषी.. शबाब. के. दिन. हैं
महकते. सुर्ख. गुलाब के दिन हैं
मुस्कुराओ कि हसीन है मौसम
मैकदा, साकी-शराब के दिन हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७१८ } {Jan 2014}





किसी की नजरों में न रह सका
किसी ने नहीं अपनाया मुझको
मेरी कविता ने भी कहा मुझसे
किसके खातिर लिखा मुझको।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल