Sunday, October 30, 2011

{ ६८ } {Oct 2011}





आओ हम हरियालियों से लहरायें
इस दुख-दर्द को चाँदनी मे नहलायें
ज़िन्दगी मे बाकी ज़िन्दगी जब तक
आओ हम खुशी से झूमे-नाचें-गायें ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, October 28, 2011

{ ६७ } {Oct 2011}






जिन्दगी खुशनसीब लगती है
और बहुत ही करीब लगती है
पास होते हैं अब भी आप मेरे
मुझे जन्नत करीब लगती है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, October 27, 2011

{ ६६ } {Oct 2011}






यह शै लाजवाब लगती है
रोशनी बेहिसाब लगती है
मुझे कुछ देर और पढने दे
तेरी सूरत किताब लगती है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, October 26, 2011

{ ६५ } {Oct 2011}






ये निर्धन को, धनवान को राह दिखाती
ये हर तन को, हर जान को राह दिखाती
इस दिए की रोशनी है हर बशर के लिए
बनके रहबर हर इंसान को राह दिखाती ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४ } {Oct 2011}






ये फकत कम नही है मोहब्बत के इस दौर में
वह हुस्न मालामाल है यह इश्क हुआ गरीब ||


-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, October 21, 2011

{ ६३ } {Oct 2011}







जीवन-गति बनी कंटकाकीर्ण है,
वर्तमान जीना है मुश्किल यहाँ,
भूत गर रखो अपनी सुधियों में,
तो भविष्य सुधार मुश्किल कहाँ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२ } {Oct 2011}






बढती उम्र का ही तो खेल है सारा
इस पड़ाव में दोष अपने पढ़ता हूँ
उन ख़्वाबों को मैं ढूँढता हूँ रातों में
जिन ख़्वाबों को दिन में गढता हूँ ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६१ } {Oct 2011}





जो न बरसे फकत गरजता है
ऐसे बादल से बाज आए हम
आसरा दे न जो मुसीबत में
ऐसे आँचल से बाज आए हम ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६० } {Oct 2011}






लौ भी न भयभीत हो गई होती
हार भी जीत में बदल गई होती
आप का प्यार मुझे मिला होता
जिंदगी गीत-संगीत हो गई होती ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५९ } {Oct 2011}





रूप सुन्दर, चलन भी सुन्दर हो
या देह का आवरण भी सुन्दर हो
पर सार्थक है उसी की सुंदरता ही
जिसका अंतःकरण भी सुन्दर हो ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५८ } {Oct 2011}





दाह-दुःख की न कोई भी सूरत थी
जिन्दगी कितनी ही ख़ूबसूरत थी
याद आता अपना बचपन जब भी
एक-दो पल की तो हर जरूरत थी ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५७ } {Oct 2011}






खुदा से मिली जिन्दगी जब तक है
तबतक खुदाई खिदमत करता चल....
कल किसने देखा है किसने जाना है
ऐ बंदे खुदा की खिदमत करता चल....

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५६ } {Oct 2011}






तुमने आवाज दी मुझे जैसे
मेरी वंशी ही मुझे बजाती हो
तेरी चितवन मुझे लगी जैसे
मेरी कविता मुझे बुलाती हो ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५५ } {Oct 2011}






अगर यह साकी पर हमारी
नवाजिश नही तो क्या है ?
मैंने उसके हुस्न को सराहा
तो ही उसे देखने वाले आये ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५४ } {Oct 2011}






उसने सपने के ही फूल बांटे हैं
मेरी किस्मत में सिर्फ कांटे हैं
मैं ऐसा दर्पण जिसके चहरे पे
वक्त ने दिए बेशुमार चांटे हैं ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५३ } {Oct 2011}






याद से गाफिल तेरी मेरा कोई लम्हा न गया
डूबे उल्फत में, पर जीस्त में तनहा रहा गया ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, October 20, 2011

{ ५२ } {Oct 2011}





रक्त रंजित भोर है और दोपहर घायल,
ख़ूबसूरत चांदनी छनछनाती है पायल ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५१ } {Oct 2011}





यादों की बर्क यहाँ रोज-रोज ही तो गिरती है,
क्या-क्या न इस दिले-बागे-इश्क पे गुजरती है |

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ५० } {Oct 2011}





बैर-अनबन-फरेब और ईर्ष्या का
एक षडयंत्र हम रोज ही रचते है
ओढ़ लेते है झूठ का लबादा हम
और सत्य की रोशनी से बचते है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४९ } {Oct 2011}





मुस्कराहट तो है उनके होठों पर
शक भरा भीतर क्या किया जाए
खुशनुमा बीत जाती यह जिन्दगी
बुनियाद शक की क्या किया जाए ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४८ } {Oct 2011}







लाख चाहो मगर नही पहुंचतीं
दिलों तक नजरें नहीं पहुँचती
दिल से दिल मिल तो जाते हैं
पर दिल की खबर नहीं पहुँचती ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४७ } {Oct 2011}






ये बेजुबान चीजों की फीकी नुमाइश
ये गुल, ये कलियाँ, ये तारे हटा दो
जहाँ से गुजरना है इस महजबीं को
वहाँ मेरे सीने की धडकन बिछा दो ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४६ } {Oct 2011}







हम तो अपनी खुशी से मिलते हैं
आप खुशकिस्मती से मिलते है
आप की बेरुखी का ये है आलम
यो ही क्या हर किसी से मिलते हैं ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४५ } {Oct 2011}







क्या दुःख-दर्द ही जिन्दगी का नाम है
क्रिया का विपरीत ही अब परिणाम है
एक पल भी चैन से कटता तो कहते
वाह ! इस जिन्दगी में बड़ा आराम है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४४ } {Oct 2011}







मेरे नयनों में मुस्कुराता है
मेरे जीवन में जगमगाता है
मेरे प्राणों में गर तुम नहीं तो
कौन इस तरह गुनगुनाता है ??

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४३ } {Oct 2011}






मेरे नयनों में थी रोशनी की तरह
मेरे तन में थी जिन्दगी की तरह
यह वक्त की बात है इधर से वह
आज गुजरी है अजनबी की तरह ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४२ } {Oct 2011}







होठों पर क्यों खेल रहा है आज नई मुस्कान का रंग
खेल रहा है तेरी आँखों में यह किस अरमान का रंग ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, October 19, 2011

{ ४१ } {Oct 2011}







आँखों में काजल की नाजुक लकीर
शानो पर गेसुओं की लंबी जंजीर
खामोश लबों पर है तबस्सुम जैसे
सागर की लहरों पे उमडती तस्वीर ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४० } {Oct 2011}







इसकदर बैरभाव बढ़ गया आपस में
रस न रह गया अब किसी भी रस में
यह दुनिया हो गयी आग का चक्रव्यूह
न मौत बस में है, न जिन्दगी बस में ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३९ } { October 2011 }








टीसते से रहते है मेरे दिल में यह सवाल बार - बार
कमजोर समझकर क्या अपना हो रहा रोज शिकार
भारत का ढंग बदलने को चक्र सुदर्शन उठाना होगा
गुलामों के शासन से बे-मायने है सुरक्षा की पुकार ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ ३८ } { October 2011 }






जो कुछ मेरे दिल में है उसे कहने दीजिए
या फिर मुझे सिर्फ खामोश रहने दीजिए
फूल हूँ, काँटा हूँ या फिर जो कुछ भी हूँ मैं
मुझे आंसूंओ की राह से ही बहाने दीजीये ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३७ } { Oct 2011 }





हर फूल तमन्नाओं का, प्यार की भेंट किया है
अपनी किस्मत के काँटों को मैंने चूम लिया है
कोई मेरी बात न समझे, मेरा दर्द न जाने कोई
सबको पीला अमृत, हमने हंसकर जहर पीया है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३६ } { Oct 2011 }







चंद सपने घूमते आँखों में
कल्पना की उड़ान पंखों में
टाँकता हूँ गुलाब गीतों के
ज़िंदगी की उदास शाखों में ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३५ } { Oct 2011 }







तलाश कर रहा हूँ अपनों में अपनों की
जबसे अपने ही हो गए है हमसे बेगाने
इस गमें-जिन्दगी से ही निपट लूं अभी
मौत क्या है? ये अभी से हम क्या जाने|

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, October 18, 2011

{ ३४ } {Oct 2011}






हर खुशी आप की सहेली है
मेरी तो ज़िन्दगी अकेली है
फर्क सिर्फ कुछ लकीरों का
वरना वैसी ही हर हथेली है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३ } {Oct 2011}






उनकी नज़रों में रोब सत्ता का
पाँव रखे चाँदी में हाथ सोने में
अब पाप आसीन है बुलंदी पे
और पुन्य सहमा सा है कोने में ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३२ } { October 2011 }






यारों ! इस जलील हुकूमत का, ये यंत्र कैसा है, ये तंत्र कैसा है
जयकार हो जहाँ चरित्रहीनों की, यारों ! यह लोकतंत्र कैसा है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, October 17, 2011

{ ३१ } { October 2011 }






चाहे जितनी मजलूम हो जनता
उसको पांवों की धुल मत समझो
चुभ भी सकता है सूख जाने पर
फूल को सिर्फ फूल मत समझो ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३० } { October 2011 }







मेरे आगे है रंग सत्ता का
मेरे पीछे है व्यंग सत्ता का
आँसुओं से भरे कटोरों पर
बजता जलतरंग सत्ता का ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २९ } { October 2011 }





साज और श्रंगार की रवानी है
हर कदम पर गलत बयानी है
कौन कहता है, रेशमी दिल्ली
इन ग़रीबों की भी राजधानी है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २८ } { October 2011 }






फिर से बुझा हुआ दीप देश का जलाना होगा
प्रगति पंथ पर बिखरे कंटकों को हटाना होगा
दान नहीं, हमें आजादी मिली अपना लहू देकर
उन क्रांतिवीरों के लहू का कर्ज चुकाना होगा ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ २७ } { October 2011 }







जिनको विष के खिलाफ रहना था
वो तो उसी की नजर में ही रहता है
आजकल का अपना सपेरा ही देखो
इस नागिन के असर में ही रहता है ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २६ } { October 2011 }







खा रहे हैं फरेब पग-पग पर
पीर मन की पी रहे हैं लोग
इस व्यवस्था में किस तरह
लाक्षागृह में जी रहे हैं लोग||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २५ } { October 2011 }






आदमियत के दर्द से जिसकी
आत्मा का बेहद लगाव होता है
देवता से कहीं अधिक निर्मल
उसका अपना स्वभाव होता है||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २४ } { October 2011 }






आज हरतरफ है बहार की खुशबू
है हमारा हर प्रियतम जिंदाबाद
कह रहा है चमन का हर एक फूल
यह दोस्ती का परचम जिंदाबाद||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २३ } { October 2011 }






वैसे यूं तो चेहरों के इस जंगल में
अजनबी तुम भी अजनबी हम भी
एक पवित्र रिश्ता अटूट है फिर भी
आदमी हो तुम भी आदमी हम भी||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, October 16, 2011

{ २२ } { October 2011 }








आओ खुशबू तुमको मेरे आँगन की बुलाती है
हृदयांगन की कलियाँ खिलने को ललचाती हैं|

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, October 9, 2011

{ २१ } { October 2011 }






ये सरिता चढ के उतर गई लगती है
या चलते चलते ठहर गई लगती है
हमदर्द एक भी नजर नही आता है
हमदएदी हद से गुजर गई लगती है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, October 8, 2011

{ २० } { October 2011 }








बात जो दिल मे है अब जबाँ से कह भी दो
क्यों सिल लिये हैं होठ अब नाम कह भी दो

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ १९ } { October 2011 }







इतने भीषण जन-रव में
मै नीरव हो मौन रहा हूँ
पर आज अकेलेपन से
कहता मै कौन कहाँ हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल