Thursday, November 24, 2022

{९८७ }




मुस्कुराहटों के लिये ये लब तरस गये 
अब खामोशीयाँ ही दर्द से कराहती हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




ज़िन्दगी ने अनगिनत घाव दिये दिल को 
वक्त गुजरा पर लहू अभी भी बह रहा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




न करो कोशिश मुझ जैसी 
बासी लकीर को हटाने की 
मैं उतना ही याद आऊँगा 
मुझे जितना तुम मिटाओगे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




बाँध देती है उम्र मस्ती को सीमाओं में 
काश कि उम्र बचपन में ही ठहर जाती। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




कुछ हँसीं लम्हे चुरा लेने को जी चाहता है 
तुमसे तुम्हीं को चुरा लेने को जी चाहता है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




अपनों मे हो गया जब गैर हूँ तब गैरों की क्या दरकार 
अपनों को अपनों कि न जरूरत न अपनों से सरोकार। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Tuesday, November 22, 2022

{९८६ }




मैं हूँ एक ठहरी हुई खामोशी जिसकी कोई आवाज नहीं 
मैं वो अफ़साना जिसका कोई अंजाम नहीं, आगाज़ नहीं 
जर्जर पिंजर सँग अब बैठा हूँ टूटती साँसों का हुजूम लिए 
पस्त हो गये हौसले सारे अब बची कूवते - परवाज़ नहीं।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





बिछी रह गईं मेरी आँखें पर तुम नहीं आये 
यादों में ही खो गईं यादें पर तुम नहीं आये 
टुकड़े-टुकड़े हो कर अब चुभ रही सीने में 
नम हुईं यादों की आँखें पर तुम नहीं आये।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





दरिया तो चाहता है कि बुझा दे सबकी प्यास 
मगर कोई प्यासा पास उसके आए तो सही। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





वो बुलंदियाँ भी किस काम की जनाब 
इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जाये। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





तुम को अपनी आँखों में तस्वीर की तरह मैं भी सजा लूँ 
दिल में धड़कन की तरह तुम भी मुझे बसाओ तो सही। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





अब कर लिया है तीरगी से समझौता 
खयाल छोड़ दिया चराग जलाने का। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Sunday, November 20, 2022

{९८५ }




शब्दों के बाण चले मुझ पर इस कदर 
हर ज़ख्म का निशान दिखता दिल पर। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





इश्क इबादत है जनाब व्यापार नहीं 
नेमत मिले तुरन्त रहती उधार नहीं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





हम तो तूफ़ानों से भी बच कर आ गये 
लोग जाने कैसे साहिल पे डूब जाते हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





यहाँ तू भी मेहमान मैं भी मेहमान 
यहाँ पर तेरा क्या और मेरा क्या। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





गूँजती आवाजों को ये सन्नाटे निगल न जायें 
रह - रह  कर  यही  खौफ़  सताता है मुझे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Wednesday, November 16, 2022

{९८४ }




शायद वो आसमान का आवारा बादल था 
जो मेरे अश्क लेकर मुझको प्यास दे गया। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





ढ़ल रहा है देखो आफताब 
कुछ तू भी कमा ले सवाब 
बाद कयामत के एक दिन 
खुदा करेगा तेरा भी हिसाब। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





अब ख्वाबों के हो गए हो तुम 
मेरी पलकें भिगो गए हो तुम 
क्यों हर किसी की आँखों में 
अपने आँसू पिरो गए हो तुम। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





अपनों को फुरसत नहीं गैरों को क्या सरोकार 
ज़िन्दगी बन कर रह गयी बस एक कारोबार। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





तेरे खातिर ही ये खता हुई हमसे 
बस तुझे ही अपना खुदा बनाया। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Friday, November 11, 2022

{९८३ }





ज़िन्दगी ईमान की जीने का शऊर हो
खुशियाँ हों हर साँस में ऐसा सुरूर हो
चमक दिलों में, हो हर पल मुस्कुराहट
गैर दर्द में पर आँख में आँसू जरूर हो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 







भाई-चारा, प्यार मोहब्बत नहीं अगर 
तो रिश्तों-नातों को ढ़ो कर क्या होगा 
जिस दर पर  कोई भी न हमदर्द मिले 
उस दर को आँसू से धो कर क्या होगा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Thursday, November 10, 2022

{९८२ }




खूब हो रहा हो जिससे नफ़रत का सिलसिला 
मोहब्बत कर के देखो नया किरदार दिखेगा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





सच के साए में झूठ पला करता है 
सच्चाई कब किसी से बर्दाश्त हुई। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





जागते हैं हम रात को बस इसी वास्ते 
वो ख्वाबों में आकर कहीं लौट न जाए। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



{९८१ }




चारों तरफ तेज  हवाओं  से घिरा हूँ 
इन आँधियों मे दीपक जलाऊँ कैसे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 






दरीचों से झाँक कर देख ली रँगीन दुनिया 
मेरे दिल में झाँक कर कभी दर्द भी देखो। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





पहले अपना ही घर था मगर अब लगता है 
अपने ही घर मे हो गए जैसे पराए से हम। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





ज़िन्दगी में दर्द सहते - सहते 
हम ज़िन्दगी जीना सीख गए। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





ज़ख्म कुछ  ऐसे मिले  हैं अपनों से 
अपने साए से भी अब डर लगता है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Sunday, November 6, 2022

{९८० }




माना तेरी महफ़िल गुलजार है जहां भर के सितारों से 
मुझ गुमनाम का भी नाम कभी जुबां से ले लिया करो। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





छोड़ दीजे खुद को खुद के हाल पर 
जो  गुजरती है  वो गुजर ही जाएगी। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





ऐ जानेजाँ, दिलनशीं बता मैं क्या जवाब दूँ 
दुनिया ये पूछती है कि दिल कहाँ लगा बैठे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





आखिर खता तो मेरी बताओ रूठे क्यों हो 
गुनाह क्या है गुनाह की सजा क्या मिलेगी। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





चलो दर्द की जुस्तजू करके देखें 
सुकूने-तबीयत कहाँ तक तलाशें। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





अश्क पीते हुए हँसता रहा हूँ 
ज़िन्दगी मरते हुए जीता रहा हूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





जरा रुको तो सही फिर जाने हम मिलें न मिलें 
दिल के आईने में मुझे ये मंजर समेटने तो दो। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





मिल जाए अगर कहीं खुदा तो खुदा से पूँछ लें हम 
ऐ ज़िन्दगी के मालिक कभी हमें भी खुशी मिलेगी। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Tuesday, November 1, 2022

{९७९ }




आहत  भावनायें  सिसकियाँ  भर रहीं 
बंद अधरों में रिसते घावों का क्रंदन है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 






न छुपाओ तुम हमसे अपनी राज की बातें 
हम तुमसे किसी बात का पर्दा नहीं करते। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 






खुशी की रुत हो या कि हो ग़म का मौसम 
नज़र उसे ही हरदम इधर-उधर ढूँढ़ती है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





चेहरे पर चढ़ाए सभी शराफत का मुखौटा 
यहाँ मुजरिम है कौन किसी को क्या पता। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





बहुत कुछ खोया है ज़िन्दगी तुझे पाने को 
सोंचता हूँ कभी अपनी वो कहानी भी कहूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल