Thursday, November 24, 2022
{९८७ }
Tuesday, November 22, 2022
{९८६ }
Sunday, November 20, 2022
{९८५ }
Wednesday, November 16, 2022
{९८४ }
Friday, November 11, 2022
{९८३ }
खुशियाँ हों हर साँस में ऐसा सुरूर हो
चमक दिलों में, हो हर पल मुस्कुराहट
गैर दर्द में पर आँख में आँसू जरूर हो।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
Thursday, November 10, 2022
{९८२ }
खूब हो रहा हो जिससे नफ़रत का सिलसिला
मोहब्बत कर के देखो नया किरदार दिखेगा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
सच के साए में झूठ पला करता है
सच्चाई कब किसी से बर्दाश्त हुई।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जागते हैं हम रात को बस इसी वास्ते
वो ख्वाबों में आकर कहीं लौट न जाए।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{९८१ }
चारों तरफ तेज हवाओं से घिरा हूँ
इन आँधियों मे दीपक जलाऊँ कैसे।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
दरीचों से झाँक कर देख ली रँगीन दुनिया
मेरे दिल में झाँक कर कभी दर्द भी देखो।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
पहले अपना ही घर था मगर अब लगता है
अपने ही घर मे हो गए जैसे पराए से हम।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़िन्दगी में दर्द सहते - सहते
हम ज़िन्दगी जीना सीख गए।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़ख्म कुछ ऐसे मिले हैं अपनों से
अपने साए से भी अब डर लगता है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
Sunday, November 6, 2022
{९८० }
माना तेरी महफ़िल गुलजार है जहां भर के सितारों से
मुझ गुमनाम का भी नाम कभी जुबां से ले लिया करो।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
छोड़ दीजे खुद को खुद के हाल पर
जो गुजरती है वो गुजर ही जाएगी।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ऐ जानेजाँ, दिलनशीं बता मैं क्या जवाब दूँ
दुनिया ये पूछती है कि दिल कहाँ लगा बैठे।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
आखिर खता तो मेरी बताओ रूठे क्यों हो
गुनाह क्या है गुनाह की सजा क्या मिलेगी।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
चलो दर्द की जुस्तजू करके देखें
सुकूने-तबीयत कहाँ तक तलाशें।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
अश्क पीते हुए हँसता रहा हूँ
ज़िन्दगी मरते हुए जीता रहा हूँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जरा रुको तो सही फिर जाने हम मिलें न मिलें
दिल के आईने में मुझे ये मंजर समेटने तो दो।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
मिल जाए अगर कहीं खुदा तो खुदा से पूँछ लें हम
ऐ ज़िन्दगी के मालिक कभी हमें भी खुशी मिलेगी।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
Tuesday, November 1, 2022
{९७९ }
आहत भावनायें सिसकियाँ भर रहीं
बंद अधरों में रिसते घावों का क्रंदन है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
न छुपाओ तुम हमसे अपनी राज की बातें
हम तुमसे किसी बात का पर्दा नहीं करते।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
खुशी की रुत हो या कि हो ग़म का मौसम
नज़र उसे ही हरदम इधर-उधर ढूँढ़ती है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
चेहरे पर चढ़ाए सभी शराफत का मुखौटा
यहाँ मुजरिम है कौन किसी को क्या पता।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बहुत कुछ खोया है ज़िन्दगी तुझे पाने को
सोंचता हूँ कभी अपनी वो कहानी भी कहूँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल