पल्लव
Saturday, February 28, 2015
{ ८७९ } {Feb 2015}
तुम्हे ये कौन समझाये तुम्हे ये कौन बतलाये
इश्क सिर्फ़ एक बार होता है बार-बार नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७८ } {Feb 2015}
कश्ती के मुसाफ़िर समन्दर लाघना चाहते हैं
लहरों की थपेडो को शायद उन्हे अन्दाजा नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७७ } {Feb 2015}
प्यार मिल पाता न गुस्ताखी के बल पर
पुल बाँधे जाते नहीं चूना-राखी के बल पर
सत्य बतला रहा हूँ सुन लो जमाने वालों
ज़िन्दगी चलती नहीं बैसाखी के बल पर।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
Friday, February 27, 2015
{ ८७६ } {Feb 2015}
जब तनहाइयाँ साथी हों ज़िन्दगी के हर पल की
तब मुस्कुराती आँखे हर दर्द बयाँ कर जाती हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७५ } {Feb 2015}
सपने भी टूट-टूट जाते हैं कारवाँ भी बिखर-बिखर जाता है
गुरूर जग सिर चढ़ कर बोलता है तब यही हादसा होता है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७४ } {Feb 2015}
मोहब्बत की जँग का यह अजब दस्तूर है
जो जीतता है वो अपना दिल हार जाता है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७३ } {Feb 2015}
अपनी मोहब्बत को कभी भूल नहीं सकता मैं
सीने से लिपटे हुए हैं उसकी छुअन के एहसास।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७२ } {Feb 2015}
बहुत की कोशिश ज़िन्दगी को समझने की
यक्ष-प्रश्न सी ज़िन्दगी कभी समझ न पाया।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७१ } {Feb 2015}
ज़िन्दगी ही लुटा दी है मैंने जिसके लिये
माँगता वही ज़िन्दगी का हिसाब बार बार।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{ ८७० } {Feb 2015}
इनायत समझ कर अब तक तुझे जीता रहा हूँ
ऐ ज़िन्दगी ! तू फ़र्ज़ है ऐसे ही जिए जाऊँगा मैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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