Saturday, November 1, 2014

{ ८२४ } {Oct 2014}





काट दी सुहानी ऋतुओं की गर्दनें भागते हुए लम्हों ने
रूमानी ज़िन्दगी की चौकड़ियाँ दहशत में डूबी रात हुईं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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