Friday, November 18, 2011

{ ८३ } {Nov 2011}






मेरे सपने उमर भर सपने ही रहे
जाना कहाँ था, कहाँ लौटा दिया
आस का एक दर्पण अनमोल था
ऐसा टूटा, नियति को पलटा दिया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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