Sunday, November 6, 2011

{ ७३ } {Nov 2011}





हो गया मन दुखी मनुज होकर
हर कदम पर मिली मुझे ठोकर
जिसमें खिलें फ़ूल कमलिनी के
काश होता गाँव का वो पोखर ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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