Sunday, March 4, 2012

{ २०० } {March 2012}





पूरा गुलशन ही खौफ़नाक
खारों का जंगल लगता है,
बेचारी कोयल क्या गाये
उल्लू का जब डंका बजता है।
गीतों का कर दिया कत्ल
बेरहम गर्दिशो - उलझन ने,
गुम है दिल से मस्ती बस
आहों का स्वागत करता है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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