Saturday, June 8, 2013

{ ६०० } {June 2013}




जुस्तजू थी मुझे तसव्वुर में उभरे हुए नक्श की
महफ़िल-महफ़िल ढूँढा उसे पर पा सका न अभी
ये आपके हुस्न, कातिल नजर का ही करिश्मा है
आपकी महफ़िल छोड कर फ़िर जा न सका कभी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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