Thursday, October 31, 2013

{ ६९४ } {Oct 2013}





सियाह रात और आँखों में उजड़े तसव्वुर
ज़ख्म दे जाते हैं शमशीर से भी गहरे-गहरे
भीड़ है चार सूँ पर हम आज भी खड़े तनहा
अश्कों में डूबे रहे चाहत के फ़ूल गहरे-गहरे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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