Sunday, November 18, 2012

{ ४०३ } {Nov 2012}






फ़ासलों के इस दौर में बढ रही हैं अब दूरियाँ
वरक भी न भर सके दिल में बसी वो खाइयाँ
संगदिल हैं सभी यहाँ और खून सर्द बर्फ़ सा
प्यासी रह गईं हैं दिल की बेचैन उदासियाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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