Saturday, November 30, 2013

{ ७०६ } {Nov 2013}





मुरझाये हुए. तेरे तन-मन में फ़िर. से ऋतु बहार. आ जायेगी
जरा अपने मन-उपवन. को सींचों सारी तस्वीर बदल जायेगी
यादों की विरह अग्नि में अब और न झुलसाओ अपना यौवन
दर्द तुम्हारा बनकर स्याही, विरह की नई रूबाई लिख जायेगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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