Friday, November 1, 2013

{ ६९८ } {Oct 2013}





यही तकदीर, यही तकदीर का अन्तर है
हर पुष्प खिला है पर महक नहीं पाया
काँटों के चुभने का दर्द सहा जिसने भी
वो ही पुष्प खिलकर आकर्षक बन पाया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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