Tuesday, September 30, 2014

{ ७६५ } {May 2014}






दिल में तड़पती है आरजू अब तक
तेरी चाहत की है जुस्तजू अब तक
शामे-वस्ल को गुजरे जमाना बीता
मेरे जेहन में छाई है तू अब तक।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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