Friday, January 30, 2015

{ ८६५ } {Jan 2015}





गुलशन में होते हैं काँटे भी अपना दामन बचा कर चल
फ़ूलों की ज़ुस्तज़ू में खारों से उलझना अच्छा तो नहीं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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