Thursday, January 22, 2015

{ ८५६ } {Jan 2015}





गगन. तक. चाँदनी. ही. चाँदनी है
प्रणय. के ज्वार. सी उन्मादिनी है
तुम्हारे. रूप के मधु-चषक पी कर
बहकी-बहकी हुई सी ये यामिनी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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