Friday, April 13, 2012

{ २३४ } {April 2012}





हर फ़ूल डालियों पर फ़ूला नही समाये
पतझड भी गजल बहारों की गुनगुनाये
ये खिले गुल चमन से खुश्बू हैं लुटा रहे
काँटों की चुभन अपने ही दिल में छुपाये ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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