Thursday, September 27, 2012

{ ३६२ } {Sept 2012}






देख कर जाम जी मचलता है
एक पर एक का दौर चलता है
लडखडाते हैं रिन्द जितना ही
मयखाना उतना ही सँभलता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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