Wednesday, September 26, 2012

{ ३५५ } {Sept 2012}






हम अक्सर लाचार हुए वहाँ बरस जाने को
कोई भी नही मिला जहाँ पर तरस खाने को
गली-गली घूमे हम नयनों में आँसू लिये हुए
अधरों की सीपी का मधुर स्पर्श पाने को।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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