Saturday, December 22, 2012

{ ४१९ } {Dec 2012}





तुम फ़ूल बन कर मुस्कुराये बाग में
ध्वनि तुम्हारी मिली राग-विराग में
तुम मिले कभी नभ में, कभी थल में
कभी बहते पानी और कभी आग में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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