Monday, December 24, 2012

{ ४३५ } {Dec 2012}





एक ही बार यह हृदय पराजित होता किसी हृदय से
यही पराजय सुखमय लगती सबसे बडी विजय से
सौन्दर्य-देवि का तभी मन करता है पूजन-अर्चन
फ़िर सुवासित हो उठता अन्तर्मन गँध-मलय से।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment