Tuesday, July 30, 2013

{ ६५२ } {July 2013}






सब कुछ लुटा दिया अपना मैंनें, अब कहने को कुछ न रहा
होठों पर दर्द उभरा करता, मगर रहा संयमित कुछ न कहा
प्याले में ढ़ाल-ढ़ाल कर पिया किया, पीड़ा की कड़वी हाला
उतरा मन्थन की सरिता में, कुछ इधर बहा कुछ उधर बहा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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