Tuesday, July 30, 2013

{ ६४४ } {July 2013}





फ़ैल रहा गहरा धुआँ हम पी रहे कड़वी हवा
जियें कबतक हम पी के केवल दूधिया दवा
फ़ैला हुआ है हर तरफ़ चमकीला भ्रमजाल
जल रही ज़िन्दगी जैसे चूल्हे पर खाली तवा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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