Friday, August 30, 2013

{ ६८० } {Aug 2013}





मित्रता से दुराव, बैर से लगाव है
दुख समेट रहा दर्द से अपनाव है
बियावान में कहीं खो गई प्रीति है
गैर तो गैर खुद से भी अलगाव है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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