Saturday, August 17, 2013

{ ६६१ } {Aug 2013}





देश की आबो-हवा में घुल गई नापाक बारूदी गँध किस कदर
बुजदिल हुई राजसत्ता, जन-जन का खौलता खून का सागर
दोस्त के भेष में दुश्मन सजा रहा रोज ही अदब की महफ़िले
हम बन के अमन के पुजारी बस रोज उड़ा रहे सफ़ेद कबूतर।।

-- गोपाल कॄष्ण शुक्ल

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