Wednesday, October 8, 2014

{ ८०० } {Sept 2014}





बिखरती शाम उलझे गेसुओं को सँवारा जाये
चिलमन से झाँकती हुई आँख को निहारा जाये
तनहाइयों के सिवा अपने पास कुछ और नहीं
बिछी है चौसर आखिरी बाजी को निखारा जाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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