Friday, October 10, 2014

{ ८०८ } {Oct 2014}





ना-मुनासिब था उनसे मिलना कल
आँख वीरान थी और दिल था बोझल
आज फ़िर से उसे ही ढ़ूँढ़ने निकला हूँ
भीड़ में खुद ही न खो जाऊँ मैं पागल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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