Thursday, November 24, 2022

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मुस्कुराहटों के लिये ये लब तरस गये 
अब खामोशीयाँ ही दर्द से कराहती हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




ज़िन्दगी ने अनगिनत घाव दिये दिल को 
वक्त गुजरा पर लहू अभी भी बह रहा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




न करो कोशिश मुझ जैसी 
बासी लकीर को हटाने की 
मैं उतना ही याद आऊँगा 
मुझे जितना तुम मिटाओगे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




बाँध देती है उम्र मस्ती को सीमाओं में 
काश कि उम्र बचपन में ही ठहर जाती। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




कुछ हँसीं लम्हे चुरा लेने को जी चाहता है 
तुमसे तुम्हीं को चुरा लेने को जी चाहता है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




अपनों मे हो गया जब गैर हूँ तब गैरों की क्या दरकार 
अपनों को अपनों कि न जरूरत न अपनों से सरोकार। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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