Thursday, November 10, 2022

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चारों तरफ तेज  हवाओं  से घिरा हूँ 
इन आँधियों मे दीपक जलाऊँ कैसे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 






दरीचों से झाँक कर देख ली रँगीन दुनिया 
मेरे दिल में झाँक कर कभी दर्द भी देखो। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





पहले अपना ही घर था मगर अब लगता है 
अपने ही घर मे हो गए जैसे पराए से हम। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





ज़िन्दगी में दर्द सहते - सहते 
हम ज़िन्दगी जीना सीख गए। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





ज़ख्म कुछ  ऐसे मिले  हैं अपनों से 
अपने साए से भी अब डर लगता है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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