Thursday, December 22, 2011

{ ११७ } {Dec 2011}





ज़िन्दगी में समेट लूँ तुम्हारी खुशबू
तुम्हारी आँख की झील में समा जाऊँ
एक-दो पल और भी निहार लूँ तुमको
क्या पता फ़िर तुमको कब मिल पाऊँ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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